बुद्धं शरणम गच्छामि ! धम्मं शरणम गच्छामि ! संघम शरणम गच्छामि !
जय भीम ! जय बुद्ध ! जय भारत !
Leberty, Equality and Fraternity !
Educate, Agitate and Organize !
Loading

Tuesday 30 November, 2010

दलित राजनीति भले ही लंगड़ी हो, उसे बढ़ाना जरूरी- प्रकाश अंबेडकर


प्रकाश अंबेडकर
‘दलित’एक ऐसा वर्ग है जो हमेशा से चर्चा में रहा है. कुछ लोगों के लिए यह अपनी राजनीति चमकाने का जरिया है, तो अब भी कई ऐसे हैं, जो इस वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं. बाबा साहेब अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ऐसे ही शख्स हैं जो सिर्फ दलित हितों की बात ही नहीं करतें, वरन इसके लिए सतत प्रयास भी कर रहे हैं. अपने आप को दलितों का नेता कहने वाले तमाम लोगों से दूर भारतीय ‘रिपब्लिकन पार्टी’ के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर महाराष्ट्र में दलितों के लिए मॉडल स्थापित करने में जुटे हैं. ताकि इसे आदर्श के रूप में अन्य राज्यों के सामने रखा जा सके. ‘दलित मत’ से अपनी बातचीत में उन्होंने बाबा साहेब, जगजीवन राम सहित मायावती की राजनीति और वर्तमान दौर में दलितों की स्थिति के बारे में विस्तार से चर्चा की पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश -
जब भी आपका जिक्र होता है, डा. अंबेडकर की याद आती है. आपने कब महसूस किया कि आप इतनी बड़ी हस्ती के पोते हैं?बचपन से ही. पिताजी भी राजनीति में थे. बौद्ध धर्म के फैलाव के लिए ‘बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया’ जो संगठन था, वह उसके अध्यक्ष थे. 
प्रकाश अंबेडकर
प्रकाश अंबेडकर
धम्म शिक्षा का कार्यक्रम इसी संस्था के माध्यम से चला. घर में प्रदेश के लोगों की भीड़ लगी रहती थी. अक्सर बाबा साहब का जिक्र होता था. रैलियों में बचपन से ही शरीक होते थे. तो यह अहसास बचपन से ही होता रहा है. ‘दादाजी’ को देखा तो नहीं है लेकिन यह जानकारी थी कि उनकी क्या भूमिका है. उमर होती गई, उनके बारे में, उनका लिखा हुआ पढ़ते गए. उनके विचारों को और उन्हें अधिक जानते गए.
आपका बचपन कहां बीता. शिक्षा कहां हुई?बाबा साहब ने मकान बनवाया था ‘राजगृह’ (दादर, मुंबई), बाबा साहेब की इच्छा से इसे विद्यार्थियों के लिए हॉस्टल में परिवर्तित कर दिया गया तो पिताजी खार (महाराष्ट्र) में शिफ्ट हो गए. बचपन वहीं बीता. स्कूल की पढ़ाई भी यहीं से हुई. 70 के आस-पास जब कॉलेज का अपना हॉस्टल बन गया तो परिवार फिर राजगृह में आ गया. कॉलेज की शिक्षा यहीं हुई. बाबा साहब का मकान था, सो तब काफी लोग आते थे दर्शन करने को. बंबई में ही कॉलेज की डिग्री हासिल की. 75 के समय इमरजेंसी के माहौल में जो राजनीतिक लहर की शुरुआत हुई, तब पुराना नेतृत्व बुजुर्ग हो चला था. दलितों की नई पीढ़ी शिक्षा लेकर आगे आ रही थी. दलित पैंथर जैसे कई दल आएं लेकिन ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएं. कुछ कम्युनिस्टों के बहकावे में आ गए तो कुछ सोसलिस्टों और कांग्रेस के बहकावे में आ गए. उन्होंने अपना जो वजूद बनाया था, वो खो बैठे.
उस समय एक्सप्लाटेशन के बीच में नामांतर का जो आंदोलन चला (मराठा यूनिवर्सिटी का नाम बदलने को लेकर चला आंदोलन), उस आंदोलन को मराठा नेताओं, पुलिस और प्रशासन ने जिस तरह कुचला, उसने देश भर के दलितों का मनोबल तोड़ दिया. दलित समाज के लोग आंदोलन के नाम से डरने लगे. कोई नेता या फिर संगठन नहीं रहा, सब बिखड़ गए. संगठन का अखिल भारतीय ढ़ांचा ढ़ह गया. हर राज्य में नई लीडरशिप पनपी. मैं मानता हूं कि वहां से एक नई राजनीति की शुरुआत हुई. राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रिय राजनीति घुस गई. स्टेट पॉलिटिक्स पिछड़े वर्ग की राजनीति थी. आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर दलितों और पिछड़ों की समस्या एक है. वो आपस में मदद करते रहे. बाबा साहब को जितना सुधार लाना था, उन्होंने कर दिया था. बदलाव की राजनीति को बढ़ावा देना जरूरी था लेकिन राजनीतिक ताकतों ने ऐसी चालें चली कि दलित राजनीति आगे बढ़ाने की बजाए अपनी ही राजनीति में फंस गई. लोकतांत्रिक राजनीति में जनसंख्या बड़ा हथियार है. वह महाराष्ट्र में उतना नहीं है, जितना बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब या फिर उड़िसा में है. लेकिन हम जनसंख्या के बल की लड़ाई नहीं लड़ सके.
सक्रिय राजनीति में आने की कब सोची?कॉलेज के बाद ही आ गया था. वकालत और राजनीति साथ-साथ चलती थी. एक ही उद्देश्य रहा है कि स्टेट्स-को की स्थिति को तोड़ना है. 80 के बाद पहली बदलाव की राजनीति आई. वीपी सिंह और चंद्रशेखर की जो राजनीति आई, हम उसमें शामिल रहे, उसे आगे ले गए. हम यह मानते थे कि यहां जाति की राजनीति चलेगी. दलितों को अगर राजनीति मे अपनी जगह बनानी हैं तो इस राजनीति का वर्गीकरण होना सबसे जरूरी है. जैसे आदिवासियों को अपनी एक पहचान मिली है, दलितों की एक पहचान बनी है, मुस्लिम, सवर्ण और दूसरे अल्पसंख्यकों, सभी की अपनी पहचान बनी है. तब सबसे बड़ा संकट पिछड़ों के साथ था. उनकी कोई पहचान नहीं थी. जब तक उनके अंदर चेतना पैदा नहीं होती तब तक बदलाव की राजनीति नहीं बल्कि स्टेटस-को की राजनीति होती. तब वीपी सिंह, कर्पूरी ठाकुर के साथ बैठकर मंडल कमीशन को लागू करने की बात हुई. लंबे समय तक राजनीति करने के लिए सोशल विचारधारा का वोटर होना जरूरी है. जैसे भाजपा के पास धर्म की राजनीति पर वोट देने वाला वोटर है. कम्यूनिस्टों के साथ वर्कर क्लास है, वैसे ही तमाम पार्टियों के पास अपने समुदाय के वोटर हैं.
हमारा मानना था कि इस देश के अंदर अपनी राजनीतिक पहचान बनानी है तो सामाजिक बदलाव की राजनीति को मानने वाले वर्ग का निर्माण करना होगा. तब मंडल कमीशन का 
प्रकाश अंबेडकर
फैसला आ चुका था. उसे लागू करने की बात हुई. अब देखिए कि पिछड़ों में अति पिछड़े और पिछड़े दो वर्ग हैं. मेरा मानना है कि आने वाले 50 सालों तक देश की राजनीति ऐसे ही चलेगी. इसमें हर वर्ग-समुदाय के नाम पर वोट देने वाला वर्ग होगा. यानि हर समुदाय की अपनी राजनीतिक पार्टी होगी. मेरा मानना है कि आने वाले एक दो चुनावो के बाद देश की राजनीति स्थिर होनी शुरू होगी. अब तक दमन की जो राजनीति थी, उसका अंत होने की शुरुआत हो चुकी है. बाबा साहेब ने देश की जो तस्वीर खिंची थी कि यहां समता हो, बंधुत्व हो, अधिकार की बात हो, अब सही मायने में देश उस पर चलना शुरू होगा. क्योंकि जब एक ग्रुप खड़ा होता है तो उसकी जो अपनी ताकत होती है, वही ताकत लोगों के साथ बातचीत करती है. यह जैसे-जैसे स्थिर होगा दलितों को देश के अंदर मान-सम्मान मिलेगा. जो सही अर्थ से जो राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी चाहिए थी, उसकी शुरुआत होगी.
आपने खुद की अपनी पार्टी ‘भारतीय रिपब्लिकन पार्टी’ (भरिपा) बना रखी है, आपकी पार्टी की बात करें तो आप उसको कहां देखते है?राजनीतिक स्तर पर जहां तक जीतने की बात है, यह सही है कि हम वहां नहीं पहुंच पाए हैं. लेकिन हमने लोगों की सोच को बदला है. हमने कुछ खास चीजों पर ध्यान दिया है. जैसे मैं दो चीजों का जिक्र अक्सर करता हूं. आज शिक्षा का निजीकरण होने से दलित-आदिवासियों को काफी नुकसान हो रहा है. निजीकरण के तहत एससी-एसटी विद्यार्थियों को खुद फीस भरनी पड़ रही है. हमारा मानना है कि अगर दलित विद्यार्थी प्राइवेट इंस्टीट्यूट में भी शिक्षा ले तो उसकी फीस सरकार भरे. दूसरी बात दलितों के लिए खुद की इंडस्ट्रीज बहुत जरूरी है. क्योंकि जब तक आर्थिक सुरक्षा नहीं होगी, सामाजिक सुरक्षा के मायने नहीं हैं. हमने महाराष्ट्र सरकार पर दलितों को आर्थिक क्षेत्र में बढ़ाने के लिए विशेष योजना बनाने का दबाव डाला. सरकार को योजना बनानी पड़ी. इसके अनुसार दलितों को कोई भी व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकार लोन देती है. दलितों को पूरे बजट का पांच फीसदी पैसा देना होता है बाकी 95 फीसदी पैसा राज्य सरकार को देना है. पिछले चार साल से यह महाराष्ट्र में लागू है. इस साल महाराष्ट्र सरकार ने इस मद में एक हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.
मेरा मानना है कि दलितों की राजनीति को सुरक्षित बनाने के लिए बाजार पर पकड़ जरूरी है. ऐसा होने पर दलितों को देखने के आमलोगों के नजरिए में फर्क आएगा. अब हम इसी योजना को केंद्रीय स्तर पर लागू करने के लिए केंद्र पर दबाव बना रहे हैं. 1950 से राजनीति में दलितों की भागीदारी हो चुकी है, अब उन्हें आर्थिक क्षेत्र में आगे बढ़ाना है.
आप बाबा साहेब के पोते हैं. बाबा साहेब का इतना बड़ा कद होने के बावजूद आखिर क्या वजह है कि आपकी पार्टी महाराष्ट्र के एक खास क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ पाई?आपको पहले यह तय करना होता है कि आप क्या करना चाहते हैं? सन् 90 में मैने ऑल इंडिया की राजनीति करनी छोड़ दी. जो पैन इंडिया की राजनीति सोचता है वह इलेक्टोरल राजनीति के बारे में सोचता है. जैसे रामविलास हों, कांशीराम हो, मायावती या फिर बूटा सिंह. इनकी जो राजनीति रही है, उन्होंने ऑल इंडिया का सोचा. इसे मैं इलेक्टोरल राजनीति मानता हूं. मैं मानता हूं अभी इसकी जरूरत नहीं है. बीच में रिजर्वेशन पर आंच आने की शुरुआत हुई. लेकिन जो भी दलित नेता मंत्रीमंडल में था, उसने अपना मुंह नहीं खोला, क्योंकि उस इलेक्टोरल राजनीति में उसको समझौता करना पड़ा. दलितों के पास शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है. बाबा साहब के बाद पहली और दूसरी पीढ़ी इसलिए शिक्षित बनी क्योंकि उसे मुफ्त में शिक्षा मिली, स्कॉलरशिप मिला. यानि उनके परिवार पर कोई जिम्मेदारी नहीं थी. निजीकरण से शिक्षा की 
प्रकाश अंबेडकर
जिम्मेदारी सरकार से शिफ्ट हो गई है. इससे दलितों की शिक्षा में कमी आने लगी है. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि निजीकरण के कारण सवर्णों के बच्चे निजी स्कूलों में चले गए जबकि गरीबों के बच्चे सरकारी स्कूलों में रह गए. सरकारी स्कूलों का नियंत्रण सवर्णों के हाथ में है, अब चूकि उनके बच्चे इसमें नहीं पढ़ते इसलिए उन्होंने इस पर ध्यान देना छोड़ दिया है.
आज दलितों-आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के सामने मॉडल डेवलप करना सबसे जरूरी है. जिसे कॉपी करके दूसरे राज्यों में भी लागू किया जाए. दलितों की राजनीति में सुधार हो चुका है. उसे आम लोगों में पहुंचाना जरूरी है. यह कैसे होगा, हम लोग यही मॉड्यूल खड़े कर रहे हैं. आज हमारा सबसे अधिक ध्यान दलितों में इंडस्ट्राइलेजेशन को लेकर है. हम अभी इसी पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. आने वाले 20-30 सालों का मॉड्यूल लोगों के सामने रखना चाहते हैं. यही दलितों-आदिवासियों और पिछड़ों को सामाजिक रूप से मजबूत करेगा. अभी महाराष्ट्र में 15 इंडस्ट्री शुरू हो चुकी है. आने वाले पांच साल के बाद प्रदेश में दलितों का एक इंडस्ट्रीयल वर्ग दिखाई देगा.
आप अकोला (सामान्य सीट) से चुनाव लड़ते हैं. जीते भी हैं. हालांकि पिछले दो बार से वहां भाजपा के सांसद हैं. जबकि आप किसी भी सुरक्षित सीट से जीत सकते हैं, तो सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की वजह क्या है?अगर आपको बदलाव की राजनीति करनी है तो इसकी शुरुआत सबसे पहले वह खुद से करनी होती है. मैं बदलाव की राजनीति करता हूं. मैं नेता हूं, एक पार्टी का अध्यक्ष हूं तो मेरे अंदर इतनी ताकत होनी चाहिए कि मैं जाति बंधन तोड़कर सबके वोट लूं. रिजर्व क्लास के लोगों ने अपनी सोच के आगे ‘घोड़े की टॉप’ लगा के रखा है. लोग इससे निकलेंगे तो उन्हें दुनिया दिखाई देगी. मैं चैलेंज देकर कहता हूं कि बिना पैसे के उम्मीदवार को भी जीता सकते हैं. बस उसकी छवि अच्छी होनी चाहिए. कार्यकर्ता होना चाहिए. यानि आप अगर बदलाव की राजनीति करना चाहते हैं तो एक मानक खड़ा करना होगा.
आपका 'अकोला पैटर्न' काफी चर्चित है, क्या है यह?पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, दलित-आदिवासी और गरीब तबके को लेकर एक मोर्चा बनाया है. इसकी शुरुआत 84 में की थी. आज अकोला में इसी मोर्चे का बोलबाला है. यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रेरणा बन चुकी है. पूरे महाराष्ट्र में इस पैटर्न की चर्चा है. कुछ लोग परंपरा से अपनी सत्ता मान रहे थे, उनके सामने बिना साधन वाला व्यक्ति खड़ा होकर जीतता है और साफ-सुथरी राजनीति करता है.

दलितों के बीच बाबा साहब अंबेडकर सर्वमान्य नेता थे. सारे लोग उन्हें पूजते हैं. उसके बाद 'बाबूजी' (जगजीवन राम) भी दलितों के बीच सर्वमान्य रहें. लेकिन इन दोनों के बात राष्ट्रीय स्तर पर सर्वमान्य दलित नेतृत्व नहीं उभर पाया, क्यों?कांग्रेस और भाजपा की जो राजनीति है, उसमें वो दलित समाज के लोगों को चढ़ाते हैं. ऐसा वह तब तक करते हैं, जब तक वो व्यक्ति खुद अपनी राजनीति नहीं करता. कांशीराम भी कांग्रेस के बलबूते नेता रहें, अपने बूते नहीं. जहां तक बाबूजी (जगजीवन राम) की बात है, नई पीढ़ी को पता नहीं है कि उनको किस तरह जलील किया गया. 1971 में जो युद्ध हुआ उसका सारा श्रेय इंदिरा गांधी को मिला, जबकि सारी प्लानिंग और व्यवस्था बाबूजी की थी. बाबूजी प्रधानमंत्री बनें, यह आमलोगों की भावना थी. किसी राजनीतिक दल का नाम नहीं लूंगा लेकिन राजनीतिक व्यवस्था ने उन्हें काफी जलील किया. उन्हें बदनाम 
प्रकाश अंबेडकर
करते हुए उनकी पूरी राजनीति खतम कर दी गई. उनकी मुझसे बात होती थी. अभी तक दलित एवं पिछड़े इतना सक्षम नहीं हुए हैं कि वो अपने किसी आदमी को प्रधानमंत्री बनवा सके. यहां की व्यवस्था मौका मिलते ही दलितों के राष्ट्रीय स्तर पर उभर रहे नेता की छवि खत्म करवा देती है. वो राजनीति और समाज दोनों से कट जाता है. इससे पूरी व्यवस्था का नुकसान होता है. बाबूजी बहुत अच्छे प्रशासक थे.
मायावती की राजनीति को आप कैसे देखते हैं? वह स्टेट लीडरशिप बन चुकी हैं. मुलायम सिंह के साथ जब उनका गठबंधन हुआ था, तब से किसी भी तरह यूपी की सरकार बनाए रखना उनकी राजनीतिक मजबूरी है. 93-94 में मुलायम सिंह और कांशीराम को सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस के सपोर्ट की जरूरत पड़ी. बीएसपी ने इसकी भरपाई महाराष्ट्र एवं आंध्रा में हुए चुनाव में कांग्रेस को फायदा पहुंचा कर की. कांशीराम के बीमार होने के बाद मायावती के राजनीति की शुरुआत हुई. लेकिन उनका रोल यूपी में ही ज्यादा रहा. कई मौंके आएं जब अन्य राज्यों में भी उनको खुद को स्थापित करने का मौका मिला लेकिन यूपी सरकार पर असर न हो इसलिए उन्होंने मौका गंवा दिया. मेरे हिसाब से मायावती का अब राष्ट्रीय स्तर पर आना मुश्किल है. अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए मायावती को हर बार दलितों के अधिकारों के साथ समझौता करना पड़ा है. जबकि दलितों की राजनीति के अंदर वह दूसरों के साथ कंप्रोमाइज नहीं कर सकती. दलितों के अंदर जो विचारधारा को जोड़ने की बात चल रही है, वह यह है कि दलितों को अपने आप में शक्तिशाली होना चाहिए. लेकिन वह पावर आपस में शेयर होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत पावर होनी चाहिए. ऐसी स्थिति में वो अपने आप को डेवलप नहीं कर पाएंगे. क्योंकि यहां की राजनीति ‘गिव एंड टेक’ की राजनीति है. मायावती दलितों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का काम नहीं कर पाई हैं. यह जरूरी है. उन्हें सोचना होगा.
गांधी और अंबेडकर के संबंधों को लेकर काफी कुछ कहा और लिखा गया है, आप इसे कैसे देखते हैं?दोनों विरोधी थे, यह सही है. गांधी वर्ण व्यवस्था चाहते थे, बाबा साहेब इसके खिलाफ थे. गांधी ग्राम व्यवस्था चाहते थे लेकिन बाबा साहेब इसके खिलाफ थे क्योंकि वहीं से वर्ण व्यवस्था पनपती है. गांधी जी के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता ज्यादा महत्वपूर्ण थी जबकि बाबा साहेब सामाजिक स्वतंत्रता पर जोर देते थे और इसके बाद ही राजनीतिक स्वतंत्रता के पक्ष में थे क्योंकि ब्रिटिशों के साथ शारीरिक नहीं बल्कि आंदोलन के स्तर पर संघर्ष था. बावजूद इसके देश की राजनीति में दोनों का योगदान महत्वपूर्ण है. गांधी जी भी सवर्ण नहीं थे. वह सवर्ण लीडरशिप को तोड़कर आम आदमी की लीडरशिप लाएं. बाबा साहेब दलितों को आगे ले आएं. उसी वक्त से सवर्णों की राजनीति को चुनौती देने की शुरुआत हो गई थी.
कहा जाता है कि महाराष्ट्र में दलित पार्टियां 42 टुकड़ों में बंटी है, क्या वह एक हो सकते है?नहीं हो सकते. देखिए, यह समझना होता है कि आपकी लड़ने की क्षमता क्या है, यह आपको पहचानना चाहिए. क्या हासिल करना है, इसकी जानकारी होनी चाहिए. अगर आप पूरी व्यवस्था को चैलेंज करते हैं तो वो आपको तहस-नहस करके छोड़ देंगे. इसलिए आपको अपने मकसद को साफ करना जरूरी है.
क्या राष्ट्रीय स्तर पर दलित नेतृत्व एक हो सकता है?देखिए प्रदेश की राजनीति बदल चुकी है. जैसे मैं कहता हूं कि मुझे फलां पार्टी के साथ इस राज्य में जाना है जबकि दूसरा कहता है कि उसे दूसरे के साथ जाने से लाभ होगा. आज केवल नाम के लिए नेशनल पालिटिक्स बचा है जबकि असल में अस्तित्व में स्टेट पॉलिटिक्स है. इसलिए जहां तक समझौते की राजनीति है, वहां अब दलितों की ऑल इंडिया पार्टी होनी मुश्किल है. उसमें एक बात होनी चाहिए कि लूज फेडरेशन होना चाहिए. राष्ट्रीय स्तर पर जो मुद्दे हैं उसपर सभी की सहमति हो. उसको लेकर एक साथ आंदोलन चले. लेकिन जहां तक समझौते की राजनीति है, उन्हें पूरी तरह छूट दी जाए कि वो अपने-अपने स्टेट में अपने हिसाब से काम करे.
क्या जाति व्यवस्था का खात्मा संभव है?
बदलाव आना शुरू हो चुका है. आज बड़े पैमाने पर अपने समाज से बाहर जाकर शादी करने की युवकों की प्रवृति बढ़ी है.
प्रकाश अंबेडकर
देखना होगा कि आने वाले 10 सालों मे यह कितना बढ़ता है. इसको बढ़ावा देना जरूरी है. यह जाति व्यवस्था को तोड़ने का एक माध्यम है. इनके पारिवारिक जीवन प्रणाली में कोई जाति नहीं होनी चाहिए. इनको अतिरिक्त सुविधाएं मिलनी चाहिए. इनके बच्चें जब स्कूल जाएं तो सिर्फ इनका नाम लिखा जाना चाहिए, न कि जाति.
आज दलितों की स्थिति को आप कैसे देखते हैं?अब दलितों में ही एक सवर्ण वर्ग की बात सामने आ रही है. मैं मानता हूं कि दलितों का एक मीडिल क्लास उभर चुका है लेकिन कमिटेड मिडिल क्लास नहीं उभरा है. वह अपनी पहचान अब भी नहीं बना सका है. वह इंविटेशन के क्लास में ही घूम रहा है. ट्रांजेक्शनल पीरियड के अंदर दलितों का मूवमेंट है. हमने सोचा कि इसमें वैचारिक योगदान दे सकते हैं, मार्गदर्शन कर सकते हैं.
आपके हाथ में सत्ता आने पर आप पहला काम क्या करेगे?सबसे पहले शिक्षा में आम भावना जरूरी है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज में समानता के बारे में भी काम करना जरूरी है. अधिकार का बचाव करने के बारे में खुद उनके सोच पर गौर करने की जरूरत है. आने वाली पीढ़ी अगर इसको भाईचारा मानती है तो इंसानियत के नाम से एक व्यवस्था बनेगी.
आज राष्ट्रीय नेतृत्व नहीं होने से दलित युवा भ्रमित है. उसको नेतृत्व की कमी खलती है, उनको क्या संदेश देंगे?दलितों में आज सबसे बड़ी जरूरत लीडरशिप की है. जब तक हर राज्य में नेतृत्व खड़ा नहीं होगा, दलितों का भविष्य सुरक्षित नहीं होगा. दलितों के अंदर लीडरशिप के निर्माण का मतलब मानसिक गुलामी का खात्मा है. लीडरशिप करना है तो डटकर करना होगा. आज का युवा अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है. उन्हें सोचना चाहिए कि बाबा साहेब को जो करना था, वो करके चले गए. उसे सबसे पहले पारिवारिक राजनीति का विरोध करना चाहिए. अब जिम्मेदारी उनपर है. दलित राजनीति के कोलैप्स होने का मतलब अपने अधिकार को खो देना है. वह भले ही लंगड़ी हो, छोटे पैमाने पर हो, जैसे भी हो उसे बढ़ावा देना चाहिए. दलित राजनीति में स्थिरता जरूरी है. नेतृत्व आसमान से नहीं आता. युवा पीढ़ी विद्यार्थी जीवन से ही लड़ाई की शुरुआत करे तो नेतृत्व खड़ा होगा. अगर कोई सामने आता है तो उसकी मदद करनी चाहिए. नेता बनता नहीं है, नेता बनाया जाता है. किसी भी राज्य की बात हो मैं मदद करने को तैयार हूं.
आपकी भविष्य की राजनीतिक योजना क्या है?राज्यों में दलितों का संगठन खड़ा हो जाए, यही लक्ष्य है. उस पर काम कर रहा हूं.
आपने इतना समय दिया, धन्यवाद
धन्यवाद, 'दलित मत'

 साभार : 'दलित मत' द्वारा 29 नवम्बर को प्रकाशित प्रकाश अम्बेडकर का साक्षात्कार .

1 comment:

  1. saghatan badhanyasathi vichar parivartan karave lagel vichar -achar badalalet ki samajatun netrutv karnare lokneta nirman hotil,parantu tyasathi boudha bandhavanche prabhodhan hone awashak ahe ! Jaibhim!!

    ReplyDelete

Please write your comment in the box:
(for typing in Hindi you can use Hindi transliteration box given below to comment box)

Do you like this post ?

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails

लिखिए अपनी भाषा में

Type in Hindi (Press Ctrl+g to toggle between English and Hindi)

Search in Labels Crowd

22 vows in hindi (1) achhut kaun the (1) adivasi sahitya (1) ADMINISTRATION AND FINANCE OF THE EAST INDIA COMPANYby Dr B R Ambedkar (1) ambedar (1) ambedkar (34) ambedkar 119th birth anniversary (2) ambedkar 22 vows (1) ambedkar and gandhi conversation (1) ambedkar and hinduism (1) ambedkar anniversary (2) ambedkar birth anniversary (2) ambedkar books (18) ambedkar chair (1) ambedkar death anniversary (1) Ambedkar in News (1) ambedkar inspiration (1) ambedkar jayanti (3) ambedkar jayanti 2011 (1) ambedkar life (3) ambedkar literature (11) ambedkar movie (3) ambedkar photographs (2) ambedkar pics (3) ambedkar sahitya (10) ambedkar statue (1) ambedkar vs gandhi (2) ambedkar writings (1) ambedkar's book on buddhism (2) ambedkarism (8) ambedkarism books (1) ambedkarism video (1) ambedkarite dalits (2) anand shrikrishna (1) arising light (1) arya vs anarya true history (1) atheist (1) beginners yoga (1) books about ambedkar (1) books from ambedkar.org (10) brahmnism (1) buddha (33) buddha and his dhamma (15) buddha and his dhamma in hindi (2) buddha jayanti (1) buddha or karl marx (1) buddha purnima (2) Buddha vs avatar (1) Buddha vs incarnation (1) buddha's first teaching day (1) Buddham Sharanam Gacchami (1) Buddham Sharanam Gachchhami (1) buddhanet books (6) buddhism (43) buddhism books (18) buddhism conversion (1) buddhism for children (1) buddhism fundamentals (1) buddhism in india (4) buddhism meditation (1) buddhism movies (1) buddhism video (7) buddhist marriage (1) caste annhilation (1) castes in india (1) castism in india (1) chamcha yug (1) charvak (1) Chatrapati Shahu Bhonsle (1) chinese buddhism (1) dalit (2) dalit and buddhism (1) dalit andolan (1) dalit antarvirodh (1) dalit books (1) dalit great persons (1) dalit history (1) dalit issues (2) dalit leaders (1) dalit literature (1) dalit masiha (1) dalit movement (2) dalit movement in Jammu (1) dalit perspectives on Religion (1) dalit politics (1) dalit reformation (1) dalit revolution (1) dalit sahitya (2) dalit thinkers (1) dalits (2) dalits glorious history (1) dalits in India (1) darvin (1) dhamma (16) dhamma Deeksha (2) digital library of India (1) docs (1) Dr Babasaheb - untold truth (1) Dr Babasaheb movie (2) federation vs freedom (1) four sublime states (1) freedom for dalits (1) gandhi vs ambedkar (1) google docs (1) guru purnima (1) hindi posts (8) hindu riddles (1) hinduism (1) in hindi (1) inter-community relations (1) Jabbar Patel movie on Ambedkar (1) jati varna system (1) just be good (1) kanshiram (1) karl marx (1) lenin (1) literature (4) lodr buddha tv (1) lord buddha (1) meditation (9) meditation books (1) meditation video (6) mindfilness (1) navayan (1) news (1) Nyanaponika (1) omprakash valmiki (1) online books about ambedkar (1) pali tripitik (2) parinirvana (1) periyar (1) pics (3) Poona Pact (1) poona pact agreement (1) prakash ambedkar (1) Prof Tulsi Ram (1) quintessence of buddhism (1) ranade gandhi and jinnah (2) sahitya (1) sampradayikta (1) savita ambedkar (1) Sayaji Rao Gaekwar (1) secret buddhism (1) secularism (1) self-realization (1) sukrat (1) Suttasaar (1) swastika (1) teesri azadi movie (1) tipitaka (1) torrent (1) tribute to ambedkar (1) Tripitik (2) untouchables (2) vaisakh purnima (1) video (7) video about ambedkar (1) Vipassana (5) vipassana books (1) vipassana video (3) vipasyana (3) vivek kumar interview (1) well-being (1) what buddha said (13) why buddhism (1) Writings and Speeches (1) Writings and Speeches by Dr B R Ambedkar (11) yoga (5) yoga books (1) yoga DVD (2) yoga meditation (2) yoga video (4) yoga-meditation (9) अम्बेडकर जीवन (1) बुद्ध और उसका धम्म (2) स्वास्तिक (1) हिंदी पोस्ट (24)

Visitors' Map


Visitor Map
Create your own visitor map!

web page counter