tag:blogger.com,1999:blog-68153689300115793792024-02-26T12:31:26.016+05:30BuddhAmbedkarA dedication to Ambedkar, Buddha and their dedications !K S Siddharthhttp://www.blogger.com/profile/01783950366597169469noreply@blogger.comBlogger15217tag:blogger.com,1999:blog-6815368930011579379.post-42862586025958920322017-03-01T07:55:00.001+05:302017-03-01T07:56:08.461+05:30Hindu Code Bill<p dir="ltr">*Hindu Code Bill*<br>
*हिन्दू कोड बिल*<br>
सब पढ़ें विशेषतया महिलाएं 🙍🏻<br>
#HinduCodeBill #buddhambedkar<br>
*बाबासाहेब* ने सविंधान के द्वारा महिलाओं को सारे अधिकार दिए है जो मनुस्मृति ने नकारे थे। हिन्दू धर्मशास्त्रों में महिलाओं का स्थान और नियम-कानून महिलाओं के हक में नहीं हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्त्री धन , विद्या और शक्ति की देवी हैं। मनु संहिता के तीसरे अध्याय के छप्पनवें श्लोक में जहां लिखा है:- ‘‘जहाॅं नारी की पूजा होती है वहां देवता रमण करते हैं।’’ वहीं दूसरी ओर पांचवे अध्याय के 155 वें श्लोक में लिखा है:-‘‘स्त्री का न तो अलग यज्ञ होता है न व्रत होता है , न उपवास। ऋग्वेद में पुत्री के जन्म को दुःख का खान और पुत्र को आकाश का ज्योति माना गया है। ऋग्वेद में ही नारी को मनोरंजनकारी भोग्या रूप का वर्णन है तथा नियोग प्रथा को पवित्र कर्म माना गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि दुनियां की सब महिलाएं शूद्र है। हिन्दु धर्म शास्त्रों में नारी की स्थिति को लेकर काफी विराधाभास है। इस्लाम में भी महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कुरानशरीफ के आयत ( 1-4-11 ) में संपति से संदर्भित मामले में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘ एक मर्द के हिस्सा बराबर है दो औरत का हिस्सा ।’’ भारत मे महिलाओ कि बहोत दयनिय अवस्था थी। मनुस्मृती महिलाओ को किसी भी तरह की आज़ादी नहीं देती थी। इसलिए डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए। महिलाओं को और अधिक अधिकार देने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए सन 1951 में उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया।</p>
<p dir="ltr">*डा. अंबेडकर* का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे. डा. अंबेडकर का दृढ. विश्वास था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में सामाजिक बराबरी का दर्जा मिलेगा. शिक्षा और आर्थिक उन्नति उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी. बबाबासाहब ने संविधान मे महिलाओं को सारे अधिकार दिये लेकिन अकेला संविधान या कानून लोगों की मानसिकता को नहीं बदल सकता, पर सच है कि यह परिवर्तन की राह तो सुगम बनाता ही है। हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने के लिए देश के पहले कानून मंत्री के रूप में आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया। </p>
<p dir="ltr">*दरअसल*, हिंदू कोड बिल पास कराने के पीछे आंबेडकर की हार्दिक इच्छा कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांत स्थापित करने की थी, जिनका उल्लंघन दंडनीय अपराध बन जाए। मसलन, स्त्रियों के लिए विवाह विच्छेद (तलाक) का अधिकार, हिंदू कानून के अनुसार विवाहित व्यक्ति के लिए एकाधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध और विधवाओं तथा अविवाहित कन्याओं को बिना शर्त पिता या पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का हक। उनका आग्रह था कि हिंदू कानून में अंतरजातीय विवाह को भी मान्यता दी जाए। इस बिल में अंतर्निहित ये न्यूनतम सिद्धांत धार्मिक रीति से विवाहित स्त्रियों को इन अधिकारों का इस्तेमाल करने और लाभ प्राप्त करने के अवसर प्रदान करते हैं।</p>
<p dir="ltr">पर देखना यह भी होगा कि आखिर आंबेडकर इस बिल को पास कराने पर इतना जोर क्यों दे रहे थे। उनकी मान्यता थी कि जातिप्रथा को बनाए रखने में महिलाओं की भूमिका निर्विवाद रूप से अहम है। इसलिए हिंदू समाज उन्हें किसी तरह की स्वतंत्रता देने का पक्षधर नहीं है। अगर वह ऐसा करने देता है तो हिंदू समाज की जाति-व्यवस्था तहस-नहस हो सकती है। उनका दृढ़ मत था कि स्त्रियां जातिवाद का प्रवेश द्वार हैं। इसीलिए ब्राह्मणवाद उन पर कब्जा जमाए रखने के लिए जी-जान लगा कर भी उद्यत रहा है। वह जानता है कि उन्हें अधीन बनाए रख कर ही ऊंच-नीच पर आधारित जाति-व्यवस्था कायम रह सकती है। इस तरह हिंदू कोड बिल महिलाओं को पारंपरिक बंधनों से मुक्ति दिलाने की ओर उठाया गया एक ऐसा कदम था जो अंत में हिंदू समाज को जाति और लिंग के कारण पैदा हुई असमानता से मुक्त करा सकता था। </p>
<p dir="ltr">*आंबेडकर* द्वारा अंतरजातीय विवाहों को हिंदू कानूनों के तहत मान्यता दिलाने की कोशिश भी समाज को जाति मुक्त बनाने की योजना का ही एक अंग थी। अगर इसे मान लिया जाता तो, आज हमारी राजनीति जातिवाद से जैसे संकुचित और छिछली होती जा रही है वैसी न होती। आंबेडकर हिंदू कोड बिल के जरिए धार्मिक आचरण के क्षेत्र में प्रगतिशील मूल्यों को रख कर निजी क्षेत्र को फिर से विधिवत परिभाषित करना और उन सामाजिक आचरणों को बदलने के लिए आधार निर्मित कर देना चाहते थे, जो हिंदुओं के जीवन को विकृत कर रहे थे। उनका यह उद्देश्य अस्पृश्यता रोकने या सबको मंदिरों में जाने देने के लुंजपुंज कानूनों से पूरा नहीं हो सकता था। इस प्रकार हिंदू कोड बिल निजी को राजनीतिक बनाने का एक जोरदार उपक्रम था।<br>
सवर्णों की संस्कृति में परिवारों की पवित्रता और उन्हें बनाए रखने पर जोर इसलिए दिया जाता है, क्योंकि ये पितृसत्ता को पुष्ट कर उन्हें अभय प्रदान करते हैं। असल में स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाने की प्रक्रिया पहले परिवार से ही शुरू होती है। यही प्रक्रिया फिर समाज तक पहुंचती है। सोपानात्मक समाज संरचना इसे आसान बनाती है। इसीलिए आंबेडकर के हिंदू कोड बिल को परिवार तोड़क और समाज के लिए घातक बताया गया था। जबकि वे इस बिल के जरिए पितृसत्ता के दुष्चक्र को भेद कर जाति-व्यवस्था को तहस-नहस करने की कोशिश कर रहे थे।</p>
<p dir="ltr">*हिंदू कोड बिल* में स्त्रियों को तलाक का अधिकार देकर आंबेडकर एक ओर विवाह की अविच्छेद्यता को चुनौती देते तो दूसरी ओर स्त्री को पुरुष के हर अन्याय को सहन करने की बाध्यता से छुटकारा दिलाते हैं। पुरुष के एक विवाहित पत्नी के रहते दूसरा विवाह करने की छूट पर प्रतिबंध लगा कर उसकी मनमानी पर अंकुश लगाते और पत्नी की स्वाधीनता और आत्मसम्मान को संरक्षित करते हैं। इसी तरह स्त्री को पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार दिला कर वे उसकी आर्थिक परनिर्भरता को खत्म कर देना चाहते हैं। बिल के ये तीनों प्रावधान निश्चय ही स्त्री-पुरुष को समान धरातल पर खड़ा कर परिवार के आधार को अधिक मजबूत और पुख्ता करने और सामाजिक समरसता को बढ़ाने वाले हैं। </p>
<p dir="ltr">*बाबासाहेब आंबेडकर* जी ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. लेकिन 1951 को डाॅ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने जैसे ही हिन्दू कोड बिल को संसद में पेश किया। संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया। सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक अंबेडकर के विरोधी हो गए। संसद के अंदर भी काफी विरोध हुआ। अंबेडकर हिन्दू कोड बिल पारित करवाने को लेकर काफी चिंतित थे। वहीं सदन में इस बिल को सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पा रहा था। वह अक्सर कहा करते थे कि:- ‘‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिन्दू कोड बिल पास कराने में है।’’ सच तो यह है कि हिन्दू कोड बिल के जैसा महिला हितों की रक्षा करने वाला विधान बनाना भारतीय कानून के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। धर्म भ्रष्ट होने की दुहाई देने वाले विद्वानों की विशेष बैठक अंबेडकर ने बुलाई। विद्वानों को तर्क की कसौटी पर कसते समझाया कि हिन्दू कोड बिल पास हो जाने से धर्म नष्ट नहीं होने वाला है। कानून शास्त्र के नजरिये से रामायण का विश्लेषण करते हुए कहा कि ‘‘ अगर राम और सीता का मामला मेरे कोर्ट में होता तो मैं राम को आजीवन कारावास की सजा देता।’’ संसद में हिन्दू कोड पर बोलते हुए डा . आम्बेडकर ने कहा कि ‘‘ भारतीय स्त्रियों की अवनति के कारण बुद्ध नहीं मनु है।’’ काफी वाद विवाद के बाद चार अनुच्छेद पास हुआ। अंततः राजेन्द्र प्रसाद ने इस्तीफे की धमकी दे दी। पंडित नेहरू इस बिल के पक्ष में थे, लेकिन वे बिल पास नहीं करा सके. अंततः डा. आम्बेडकर ने 27 सितंबर को हिन्दू कोड बिल सहित कई अन्य मुद्दों को लेकर कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।</p>
<p dir="ltr">*हालाँकि बाद में यह 4 बार में पास हुआ जो निम्न प्रकार ह*ै :-<br>
1) 18 मई 1955 – हिन्दू विवाह बिल पास<br>
2) 17 जून 1956 – दलितों के उत्तराधिकार बताये गए l<br>
3) 25 अगस्त 1956 – अल्प्सख्यकों के अधिकार मिले l<br>
4) 14 दिसम्बर 1956 – हिन्दू अछूत मिलन बिल पास हुआ l (यह बिल बाबा साहेब के परिनिर्वाण के बाद पास हुआ जिसको वे अपने सामने पास होते देखना चाहते थे) <br>
भारत को संविधान देने वाले इस महान नेता ने 06 दिसंबर, 1956 को देह-त्याग दिया. आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है तो यह इसी शख्स के कार्यों से मुमकिन हो सका है. भारत सदैव बाबा भीमराव अंबेडकर का कृतज्ञ रहेगा.👏👏</p>
<p dir="ltr">*संकलनकर्ता*<br>
💲सचिन अम्बेडकर🅰<br>
✍ सोशल ब्रेनवाश ™</p>
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---मनु स्मृति पर *ओशो* के विचार...</p>
<p dir="ltr">  *मनु* की स्मृति पढ़ने जैसी है। मनु की स्मृति से ज्यादा अन्यायपूर्ण शास्त्र खोजना कठिन है, क्योंकि कोई न्याय जैसी चीज ही नहीं है। मनुस्मृति हिंदुओं का आधार है--उनके सारे कानून,समाज-व्यवस्था का। अगर एक ब्राह्मण एक शूद्र की लड़की को भगाकर ले जाये तो कुछ भी पाप नहीं है। यह तो सौभाग्य है शूद्र की लड़की का। लेकिन अगर एक शूद्र, ब्राह्मण की लड़की को भगाकर ले जाये तो महापाप है। और हत्या से कम, इस शूद्र की हत्या से कम दंड नहीं। यह न्याय है! और इसको हजारों साल तक लोगों ने माना है।<br>
जरूर मनाने वाले ने बड़ी कुशलता की होगी। कुशलता इतनी गहरी रही होगी, जितनी कि फिर दुनिया में पृथ्वी पर दुबारा कहीं नहीं हुई। ब्राह्मणों ने जैसी व्यवस्था निर्मित की भारत में, ऐसी व्यवस्था पृथ्वी पर कहीं कोई निर्मित नहीं कर पाया, क्योंकि ब्राह्मणों से ज्यादा बुद्धिमान आदमी खोजने कठिन हैं। बुद्धिमानी उनकी परंपरागत वसीयत थी। इसलिये ब्राह्मण शूद्रों को पढ़ने नहीं देते थे क्योंकि तुमने पढ़ा कि बगावत आई। स्त्रियों को पढ़ने की मनाही रखी क्योंकि स्त्रियों ने पढ़ा कि बगावत आई।<br>
स्त्रियों को ब्राह्मणों ने समझा रखा था, पति परमात्मा है। लेकिन पत्नी परमात्मा नहीं है! यह किस भांति का प्रेम का ढंग है?कैसा ढांचा है? इसलिये पति मर जाये तो पत्नी को सती होना चाहिये, तो ही वह पतिव्रता थी। लेकिन कोई शास्त्र नहीं कहता कि पत्नी मर जाये तो पति को उसके साथ मर जाना चाहिये, तो ही वहपत्नीव्रती था। ना, इसका कोई सवाल ही नहीं।<br>
पुरुष के लिये शास्त्र कहता है कि जैसे ही पत्नी मर जाये,जल्दी से दूसरी व्यवस्था विवाह की करें। उसमें देर न करें। लेकिन स्त्री के लिये विवाह की व्यवस्था नहीं है। इसलिये करोड़ों स्त्रियां या तो जल गईं और या विधवा रहकर उन्होंने जीवन भर कष्ट पाया। और यह बड़े मजे की बात है, एक स्त्री विधवा रहे, पुरुष तो कोई विधुर रहे नहीं; क्योंकि कोई शास्त्र में नियम नहीं है उसके विधुर रहने का।<br>
तो भी विधवा स्त्री सम्मानित नहीं थी, अपमानित थी। होना तो चाहिये सम्मान, क्योंकि अपने पति के मर जाने के बाद उसने अपने जीवन की सारी वासना पति के साथ समाप्त कर दी। और वह संन्यासी की तरह जी रही है। लेकिन वह सम्मानित नहीं थी। घर में अगर कोई उत्सव-पर्व हो तो विधवा को बैठने का हक नहीं था। विवाह हो तो विधवा आगे नहीं आ सकती। बड़े मजे की बात है;कि जैसे विधवा ने ही पति को मार डाला है! इसका पाप उसके ऊपर है। जब पत्नी मरे तो पाप पति पर नहीं है, लेकिन पति मरे तो पाप पत्नी पर है! अरबों स्त्रियों को यह बात समझा दी गई और उन्होंने मान लिया। लेकिन मानने में एक तरकीब रखनी जरूरी थी कि जिसका भी शोषण करना हो, उसे अनुभव से गुजरने देना खतरनाक है और शिक्षित नहीं होना चाहिये। इसलिये शूद्रों को,स्त्रियों को शिक्षा का कोई अधिकार नहीं।<br>
तुलसी जैसे विचारशील आदमी ने कहा है कि 'शूद्र, पशु, नारी,ये सब ताड़न के अधकारी।' इनको अच्छी तरह दंड देना चाहिये। इनको जितना सताओ, उतना ही ठीक रहते हैं। 'शूद्र, ढोल, पशु,नारी...' ढोल का भी उसी के साथ--जैसे ढोल को जितना पीटो,उतना ही अच्छा बजता है; ऐसे जितना ही उनको पीटो, जितना ही उनको सताओ उतने ही ये ठीक रहते हैं। यही धारा थी। इनको शिक्षित मत करो, इनके मन में बुद्धि न आये, विचार न उठे। अन्यथा विचार आया, बगावत आई। शिक्षा आई, विद्रोह आया।<br>
विद्रोह का अर्थ क्या है? विद्रोह का अर्थ है, कि अब तुम जिसका शोषण करते हो उसके पास भी उतनी ही बुद्धि है, जितनी तुम्हारे पास। इसलिये उसे वंचित रखो।<br>
        *ओशो* - बिन बाती बिन तेल--(झेन कथा) प्रवचन--8</p>
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सत्ता मे बैठे मनूवादी जो बुद्ध के नाम पर बौद्ध देशों से धन ऐंठने और बुद्ध संस्कृति के विनाश के अलावा कुछ नहीं करते।<br>
राष्ट्रीय काँग्रेस के उदासीन रवैये का<br>
एक उत्तम उदाहरण आपके जानकारी के लिए दे रहें है।<br>
डॉ बी आर अंबेडकर का पंडित जवाहरलाल नेहरू को लिखा पत्र<br>
*A LETTER TO JAWAHARLAL NEHRU*<br>
*REGARDING  THE BOOK*</p>
<p dir="ltr">*‘ 📘BUDDHA AND HIS DHAMMA’*</p>
<p dir="ltr">_Dr.  B.  R.  Ambedkar  had  written  a  letter,  on  *14th  September 1956* to Pandit Jawahadal Nehru regarding a book on_<br>
*“The Buddha and his Dhamma”.* </p>
<p dir="ltr">It is as follows  : Editors. </p>
<p dir="ltr">*My dear Panditji,*<br>
*_I am enclosing herewith two copies of a printed booklet showing the Table of Contents of a book on_* *“The Buddha and His Dhamma”* *_which I have just finished._* _The book is in the press.  From  the  table  of  the  contents  you  will  see  for  yourself how exhaustive the work is_.<br>
*_The book is expected to be in the Market in September 1956._*<br>
*_I have spent five years over it._*_The booklet will speak for the quality of the work. *The cost of printing is very hevy and will come to about Rs.  20,000. This  is  beyond  my  capacity*  and  I  am,  therefore, canvassing help from all quarters._<br>
*I  wonder  if  the  Government  of  India  could  purchase  about  500 copies for distribution among the various libraries and among the many scholars whom it is inviting during the course of this year for the celebration of the Buddha’s 2500 years’ anniversary.*</p>
<p dir="ltr">*_I know your interest in Buddhism. That is why I am writing to you._*_I hope that you will render some help in this matter._</p>
<p dir="ltr">Yours sincerely, <br>
(Signed) <br>
*B. R. AMBEDKAR.*</p>
<p dir="ltr">*Pt. NEHRU’S REPLY*</p>
<p dir="ltr">Pandit Jawaharlal Nehru had responded to the letter of Dr. B. R. Ambedkar. </p>
<p dir="ltr">*_He expressed his inability to purchase the Book “Buddha and His Dhamma”._*</p>
<p dir="ltr">_He referred this to Dr.  Radhakrishnan, the  Chairman  of  Buddha  Jayanti  Commttee._</p>
<p dir="ltr">Following is the reply by Pt. Jawaharlal Nehru  : </p>
<p dir="ltr">Editors. Shri Jawaharlal Nehru, Prime Minister of India, NEW DELHI. No.  2196-PMH/56. NEW DELHI September 15, 1956.</p>
<p dir="ltr">*My dear Dr. Ambedkar,*</p>
<p dir="ltr">*_Your letter of the 14th September. I  rather  doubt  if  it  will  be  possible  for  us  to  buy a  large number of copies of your book suggested by you._*</p>
<p dir="ltr">_We had set aside a certain sum for publication on the occasion of the Buddha Jayanti._*_That sum has been exhausted and, in fact, exceeded.  Some  proposals  for  books  relating  to  Buddhism  being financed by us had, therefore, to be rejected._* <br>
_I am, however, sending  your  letter  to  *Dr.  Radhakrishnan,*  the Chairman  of the Buddha Jayanti Committee._</p>
<p dir="ltr">*_I might  suggest  that your  book  might be  on  sale  in  Delhi and elsewhere at the time of the Buddha Jayanti celebrations when many people will come from abroad. It might find a good sale then._*</p>
<p dir="ltr">Yours sincerely, <br>
(Signed)<br>
*JAWAHARLAL NEHRU.*</p>
<p dir="ltr">Dr. B. R. Ambedkar, 26, Alipur Road, Civil Lines, DELHI. </p>
<p dir="ltr">*_Dr. S. Radhakrishnan informed on phone to Dr. B. R. Ambedkar  expressing  his  inability  to do  anything  in  this regard._*</p>
<p dir="ltr">*References :- Dr.BAW&S Vol- 17 Part 1 (Page No 444,445)*</p>
<p dir="ltr">🙏🙏🙏🌷🙏🙏🙏</p>
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■■ दुनिया के वो महान नास्तिक लोग जिन्होंने मानव सभ्यता के विकास को गति दी-■■</p>
<p dir="ltr">1 - चार्वाक का कहना था -"इश्वर एक रुग्ण विचार प्रणाली है , इससे मानवता का कोई कल्याण होने वाला नहीं है "</p>
<p dir="ltr">2- गौतम बुद्ध (563ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व )– बुद्ध कहते है की भगवान नाम की कोई चीज नही है! भगवान कि लिये अपना समय नष्ट मत करो ।<br>
केवल सत्य ही सब कुछ है l अपना दीपक खुद बनो ।</p>
<p dir="ltr">3- अजित केशकम्बल ( 523 ई . पू )अजित केश्कंबल बुद्ध के समय कालीन विख्यात तीर्थंकर थे , त्रिपितिका में अजित के विचार कई जगह आये हैं , उनका कहना था -" दान, यज्ञ , हवन नहीं .. लोक परलोक नहीं "</p>
<p dir="ltr">4 - सुकरात ( 466-366 ई पू )"इश्वर केवल शोषण का नाम है "</p>
<p dir="ltr">5 - इब्न रोश्द ( 1126-1198 )इन6का जन्म स्पेन के मुस्लिम परिवार में हुआ था , रोश्द के दादा जामा मस्जिद के इमाम थे , इन्हें कुरआन कंठस्थ थी । इन्होने अल्लाह के अस्तित्व को नकार दिया था और इस्लाम को राजनैतिक गिरोह कहाथा । जिस कारण मुस्लिम धर्मगुरु इनकी जान के पीछे पड़ गए थे ।रोश्द ने दर्शन के बुद्धि प्रधान हथियार से इस्लाम के मजहबी वादशास्त्रियों की खूब खबर ली ।</p>
<p dir="ltr">6 - कॉपरनिकस ( 1473-1543)इन्होने धर्म गुरुओं की पूल खोल थी इसमें धर्मगुरु ये कह कर को मुर्ख बना रहे थे की सूर्य प्रथ्वी के चक्कर लगता है । कॉपरनिकस ने अपने पप्रयोग से ये सिद्ध कर दिया की प्रथ्वी सहित सौर मंडल के सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते हैं, जिस कारण धर्म गुरु इतने नाराज हुए की कोपरनिकस के सभी सार्थक वैज्ञानिको को कठोर दंड देना प्रारंभ कर दिया.</p>
<p dir="ltr">7 - मार्टिन लूथर ( 1483-1546)इन्होने जर्मनी में अन्धविश्वास, पाखंड और धर्गुरुओं के अत्याचारों के खिलाफ आन्दोलन किया इन्होने कहा था " व्रत , तीर्थयात्रा , जप , दान अदि सब निर्थक है "</p>
<p dir="ltr">8- सर फ्रेंसिस बेकन ( 1561-1626)अंग्रेजी के सारगर्भित निबंधो के लिए प्रसिद्ध, तेइस साल की उम्र में ही पार्लियामेंट के सदस्य बने , बाद में लार्ड चांसलर भी बने । उनका कहना था"नास्तिकता व्यक्ति को विचार . दर्शन , स्वभाविक निष्ठां , नियम पालन की और ले जाती है , ये सभीचीजे सतही नैतिक गुणों की पथ दर्शिका हो सकती हैं ।</p>
<p dir="ltr">9- बेंजामिन फ्रेंकलिन (1706-1790)इनका कहना था " सांसारिक प्रपंचो में मनुष्य धर्म से नहीं बल्कि इनके न होने से सुरक्षित है "</p>
<p dir="ltr">10- चार्ल्स डार्विन (1809-1882)इन्होने ईश्वरवाद और धार्मिक गुटों पर सर्वधिक चोट पहुचाई , इनका कहना था " मैं किसी ईश्वरवाद में विश्वास नहीं रखता और न ही आगमी जीवन के बारे में "</p>
<p dir="ltr">11 - कार्ल मार्क्स ( 1818-1883)कार्ल मार्क्स का कहना था " इश्वर का जन्म एक गहरी साजिश से हुआ है " और " धर्म एक अफीम है " उनकी नजर में धर्म विज्ञानं विरोधी , प्रगति विरोधी , प्रतिगामी , अनुपयोगी और अनर्थकारी है , इसका त्याग ही जनहित में है ।</p>
<p dir="ltr">12- पेरियार (1879-1973)इनका जन्म तमिलनाडु में हुआ और इन्होने जातिवाद , ईश्वरवाद , पाखंड , अन्धविश्वास पर जम के प्रहार किया l</p>
<p dir="ltr">13- अल्बर्ट आइन्स्टीन ( 1879-1955)विश्वविख्यात वैज्ञानिक का कहना था " व्यक्ति का नैतिक आचरण मुख्य रूप से सहानभूति , शिक्षा और सामाजिक बंधन पर निर्भर होना चाहिए , इसके लिए धार्मिक आधार की कोई आवश्यकता नहीं है . मृत्यु के बाद दंड का भय और पुरस्कार की आशा से नियंत्रित करने पर मनुष्य की हालत दयनीय हो जाती है"</p>
<p dir="ltr">14 कामरेड - भगत सिंह (1907-1931)प्रमुख स्वतन्त्रता सैनानी भगत सिंह ने अपनी पुस्तक " मैं नास्तिक क्यों हूँ?" में कहा है " मनुष्य ने जब अपनी कमियों और कमजोरियों पर विचार करते हुए अपनी सीमाओं का अहसास किया तो मनुष्य को तमाम कठिनाईयों का साहस पूर्ण सामना करने और तमाम खतरों के साथ +वीरतापूर्ण जुझने की प्रेरणा देने वाली तथा सुख दिनों में उच्छखल न हो जाये इसके लिए रोकने और नियंत्रित करने के लिए इश्वर की कल्पना की गयी है "</p>
<p dir="ltr">15- कामरेड लेनिन– लेनिन के अनुसार " जो लोग जीवन भर मेहनत मशक्कत करते है और आभाव में जीते हैं उन्हें धर्म इहलौकिक जीवन में विनम्रता और धैर्य रखने की तथा परलोक में सुख की आशा से सांत्वना प्राप्त करने की शिक्षा देता है , परन्तु जो लोग दुसरो के श्रम पर जीवित रहते हैं उन्हें इहजीवनमें दयालुता की शिक्षा देता है , इस प्रकार उन्हें शोषक के रूप में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने का एक सस्ता नुस्खा बता देता है"</p>
<p dir="ltr">16-रामस्वरूप वर्मा (संस्थापक- अर्जक संघ)-अर्जक समाज का शोषण करने के लिए ईश्वर, आत्मा, पुनर्जन्म, भाग्यवाद ,जाति-पाति छुआछूत आदि ब्राह्मणों ने बनाया है।</p>
<p dir="ltr">17- चौधरी महाराज सिंह भारती (प्रणेता-अर्जक संघ)-ब्राह्मणवाद शोषण का हथियार है।</p>
<p dir="ltr">18 -जगदेव प्रसाद (पूर्व मंत्री-बिहार सरकार)-ईश्वर, आत्मा आदि की कल्पना तमाम पिछङे, दलितों को बेवकूफ बनाकर ब्रहा्मणों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए बनाया है!</p>
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<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2>
Bhagwan Buddha aur Unka Dharma</h2>
Hindi Translation of "The Buddha and His Dhamma" by Dr B R Ambedkar
Translator: Bhadant Anand Kaushalyayan
The Buddha and His Dhamma, a treatise on Lord Buddha's life and Buddhism, was the last work of Indian statesman and scholar Dr B R Ambedkar. The book is treated as a holy text by Indian Buddhists. It was first published in 1957 after Ambedkar's death. It was again Published in 1979 by the Education Department of the Government of Maharashtra as the eleventh volume of Ambedkar's collected writings and speeches, with a list of sources and an index.
<br />
<br />
<center>
<img a="" href="http://buddhambedkar.files.wordpress.com/2013/03/buddha-and-his-dhamma-hindi-dr-b-r-ambedkar.pdf" imageanchor="1" /><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-HvaPcymGz4w/UTWkCZnAWqI/AAAAAAAAA2k/HfnTg3MNe24/s320/BAHD.png" /></center>
</div>
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<h2>
भगवान बुद्ध और उनका धर्म</h2>
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<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-ChBwk_amhHw/UHreF6xf6OI/AAAAAAAAAyk/vQ2yt5fDZ1s/s1600/SRDarapuri.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-ChBwk_amhHw/UHreF6xf6OI/AAAAAAAAAyk/vQ2yt5fDZ1s/s1600/SRDarapuri.jpg" /></a></div>
आज दीक्षा दिवस है। इस दिन डॉ आंबेडकर ने 5 लाख अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी और धम्म चक्र को पुनः प्रचालित किया था। यह महान अशोक के बाद दुनिया में पहली ऐतिहासिक घटना थी जब किसी एक व्यक्ति के आह्वान पर इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने धर्म परिवर्तन किया हो।
<br />
वास्तव में यह धर्म परिवर्तन नहीं था क्योंकि यह तो अछूतों की बौद्ध धम्म में वापसी थी। डॉ आंबेडकर ने अपनी खोज पूर्ण पुस्तक " अछूत कौन और कैसे" में तथ्यों सहित यह सिद्ध किया है कि अछूतों के पूर्वज बौद्ध धम्म के अनुयायी थे और बाद में उन्हें बौद्ध धम्म और गोमाँस भक्षण न छोड़ने के अछूत बना कर दण्डित किया गया था। डॉ आंबेडकर द्वारा धम्म परिवर्तन से पहले और बाद में भी हिन्दुओं और कुछ दलित नेताओं द्वारा इस का यह कह कर विरोध किया गया था कि इस से दलितों का कोई भला होने वाला नहीं है। इस सम्बन्ध में बी एस पी के नेता कांशी राम की भी यही धारणा थी। बाबा साहेब के धम्म परिवर्तन आन्दोलन के फलस्वरूप 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में बौद्धों (नव बौद्धों ) की आबादी लगभग 80 लाख थी जो भारत की कुल आबादी का 0.8 प्रतिशत थी। अब 2011 की जनगणना में इसके काफी बढ जाने की उम्मीद है। जो लोग बाबा साहेब के बौद्ध धम्म में दलितों की वापसी आन्दोलन का विरोध करते थे उस के उतर में निम्नलिखित लेख से स्पष्ट है कि जिन दलितों ने बौद्ध धम्म अपनाया है उन्होंने हिन्दू दलितों की अपेक्षा बहुत तरक्की की है जो कि बाबा साहेब के आन्दोलन की सार्थकता को सिद्ध करता है
<br />
<hr />
<br />
नव बौद्ध हिन्दू दलितों से बहुत आगे<br />
डॉ. एस आर दारापुरी <br />
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डॉ. बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर ने ३१ मई , १९३६ को दादर (बम्बई ) में "धर्म परिवर्तन क्यों? " विषय पर बोलते हुए अपने विस्तृत भाषण में कहा था , " मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ कि मनुष्य धर्म के लिए नहीं बल्कि धर्म मनुष्य के लिए है. अगर मनुष्यता की प्राप्ति करनी है तो धर्म परिवर्तन करो. समानता और सम्मान चाहिए तो धर्म परिवर्तन करो. स्वतंत्रता से जीविका उपार्जन करना चाहते हो धर्म परिवर्तन करो . अपने परिवार और कौम को सुखी बनाना चाहते हो तो धर्म परिवर्तन करो." इसी तरह १४ अक्टूबर, १९५६ को धर्म परिवर्तन करने के बाद बाबा साहेब ने कहा था, " आज मेरा नया जन्म हुआ है."<br />
<br />
आईए अब देखा जाये कि बाबा साहेब ने धर्म परिवर्तन के जिन उद्देश्यों और संभावनाओं का ज़िकर किया था, उन की पूर्ती किस हद तक हुयी है और हो रही है. सब से पहले यह देखना उचित होगा कि बौद्ध धर्म परिवर्तन कि गति कैसी है. सन २००१ की जन गणना के अनुसार भारत में बौद्धों की जनसँख्या लगभग ८० लाख है जो कि कुल जन संख्या का लगभग ०.८ प्रतिशत है. इस में परम्परागत बौद्धों की जन संख्या बहुत ही कम है और यह हिन्दू दलितों में से धर्म परिवर्तन करके बने नव बौद्ध ही हैं. इस में सब से अधिक बौद्ध महाराष्ट्र में ५८.३८ लाख, कर्नाटक में ४.०० लाख और उत्तर प्रदेश में ३.०२ लाख हैं. सन १९९१ से सन २००१ की अवधि में बौद्धों की जनसँख्या में २४.५४% की वृद्धि हुयी है. जो कि बाकी सभी धर्मों में हुयी वृद्धि से अधिक है. इस से स्पष्ट है कि बौद्धों की जन संख्या में भारी मात्रा में वृद्धि हुयी है.<br />
<br />
अब अगर नव बौद्धों में आये गुणात्मक परिवर्तन की तुलना हिदू दलितों से की जाये तो यह सिद्ध होता है कि नवबौद्ध हिन्दू दलितों से बहुत क्षेत्रों में बहुत आगे बढ़ गए हैं जिस से बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन के उद्धेश्यों की पूर्ती होने की पुष्टि होती है. अगर सन २००१ की जन गणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर नव बौद्धों की तुलना हिन्दू दलितों से की जाये तो नव बौद्ध निम्नलिखित क्षेत्रो में हिन्दू दलितों से बहुत आगे पाए जाते हैं:-<br />
<br />
१. लिंग अनुपात :- नव बौद्धों में स्त्रियों और पुरुषों का अनुपात ९५३ प्रति हज़ार है जबकि हिन्दू दलितों में यह अनुपात केवल ९३६ ही है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की स्थिति हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी है. नव बौद्धों में महिलायों का उच्च अनुपात बौद्ध धर्म में महिलायों के समानता के दर्जे के अनुसार ही है जबकि हिन्दू दलितों में महिलायों का अनुपात हिन्दू धर्म में महिलायों के निम्न दर्जे के अनुसार है. नव बौद्धों में महिलायों का यह अनुपात हिन्दुओं के ९३१, मुसलमानों के ९३६, सिक्खों के ८९३ और जैनियों के ९४० से भी अधिक है.<br />
<br />
२. बच्चों (०-६ वर्ष तक ) का लिंग अनुपात:- उपरोक्त जन गणना के अनुसार नव बौद्धों में ०-६ वर्ष तक के बच्चों का लड़कियों और लड़कों का लिंग अनुपात ९४२ है जब कि हिन्दू दलितों में यह अनुपात ९३५ है. यहाँ भी लड़के और लड़कियों का लिंग अनुपात धर्म में उन के स्थान के अनुसार ही है. नव बौद्धों में यह अनुपात हिन्दुओं के ९३१, मुसलामानों के ९३६, सिक्खों के ८९३ और जैनियों के ९४० से भी ऊँचा है.<br />
<br />
३. शिक्षा दर :- नव बौद्धों में शिक्षा दर ७२.७ % है जबकि हिन्दू दलितों में यह दर सिर्फ ५४.७ % है. नव बौद्धों का शिक्षा दर हिन्दुओं के ६५.१ % , मुसलमानों के ५९.१ % और सिक्खों के ६९.७ % से भी अधिक है. इस से स्पष्ट तौर से यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म में ज्ञान और शिक्षा को अधिक महत्त्व देने के कारण ही नव बौद्धों ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी तरक्की की है जो कि हिन्दू दलितों कि अपेक्षा बहुत अधिक है.<br />
<br />
४. महिलायों का शिक्षा दर:- नव बौद्धों में महिलायों का शिक्षा दर ६१.७ % है जब कि हिन्दू दलितों में यह दर केवल ५४.७ % ही है. नव बौद्धों में महिलायों का शिक्षा दर हिन्दू महिलायों के ५२.३ %, और मुसलमानों के ५०.१ % से भी अधिक है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की शिक्षा कि ओर अधिक ध्यान दिया जाता है.<br />
<br />
५. कार्य सहभागिता दर:- नव बौद्धों में कार्य सहभागिता दर ४०.६ % है जब कि हिन्दू दलितों में यह दर ४०.४ % है. नव बौद्धों का कार्य सहभागिता दर हिन्दुओं के ४०.४, मुसलमानों के ३१.३, ईसाईयों के ३९.७, सिखों के ३७.७ और जैनियों के ३२.७ % से भी अधिक है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्ध बाकी सभी वर्गों के मुकाबले में नियमित नौकरी करने वालों की श्रेणी में सब से आगे हैं जो कि उनकी उच्च शिक्षा दर के कारण ही संभव हो सका है. इस कारण वे हिन्दू दलितों से आर्थिक तौर पर भी अधिक संपन्न हैं.<br />
<br />
उपरोक्त तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि नव बौद्धों में लिंग अनुपात, शिक्षा दर, महिलायों का शिक्षा दर और कार्य सहभागिता की दर न केवल हिन्दू दलितों बल्कि हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों और जैनियों से भी आगे है. इस का मुख्य कारण उन का धर्म परिवर्तन करके मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर प्रगतिशील होना ही है.<br />
इस के अतिरिक्त अलग अलग शोध कर्ताओं द्वारा किये गए अध्ययनों में यह पाया आया है कि दलितों के जिन जिन परिवारों और उप जातियों ने डॉ. आंबेडकर और बौद्ध धर्म को अपनाया है उन्होंने हिन्दू दलितों की अपेक्षा अधिक तरक्की की है. उन्होंने ने पुराने गंदे पेशे छोड़ कर नए साफ सुथरे पेशे अपनाये हैं. उन में पढाई की ओर अधिक झुकाव पैदा हुआ है. वे भाग्यवाद से मुक्त हो कर अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं. वे जातिगत हीन भावना से मुक्त हो कर अधिक स्वाभिमानी हो गए हैं. वे धर्म के नाम पर होने वाले आर्थिक शोषण से भी मुक्त हुए हैं और उन्होंने अपनी आर्थिक हालत सुधारी है. उनकी महिलायों और बच्चों की हालत हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी है.<br />
<br />
उपरोक्त संक्षिप्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म ही वास्तव में दलितों के कल्याण और मुक्ति का मार्ग है . नव बौद्धों ने थोड़े से समय में हिन्दू दलितों के मुकाबले में बहु तरक्की की है, उन की नव बौद्धों के रूप में एक नयी पहिचान बनी है. वे पहिले की अपेक्षा अधिक स्वाभिमानी और प्रगतिशील बने है. उन का दुनिया और धर्म के बारे नजरिया अधिक तार्किक और विज्ञानवादी बना है. नव बौद्धों में धर्म परिवर्तन के माध्यम से आये परिवर्तन और उन द्वारा की गयी प्रगति से हिन्दू दलितों को प्रेरणा लेनी चाहिए. उन को हिन्दू धर्म की मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर नव बौद्धों की तरह आगे बढ़ना चाहिए. वे एक नयी पहिचान प्राप्त कर जातपात के नरक से बाहर निकल कर समानता और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं. इस के साथ ही नव बौद्धों को भी अच्छे बौद्ध बन कर हिन्दू दलितों के सामने अच्छी उदाहरण पेश करनी चाहिए ताकि बाबा साहेब का भारत को बौद्धमय बनाने का सपना जल्दी से जल्दी साकार हो सके.
<br />
<br />
साभारः<br />
एस आर दारापुरी <br />
<a href="https://www.facebook.com/srdarapuri/posts/10151293277366554">https://www.facebook.com/srdarapuri/posts/10151293277366554 </a></div>
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<blockquote class="tr_bq">
<span style="color: #666666; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px;">Ambedkar’s Buddhism is a radical, rational reading of the traditional for our times</span></blockquote>
-<a class="fspprintsavelinks2" href="http://www.outlookindia.com/peoplefnl.aspx?pid=14346&author=Christopher+Queen" style="color: black; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 11px; text-decoration: none; text-transform: uppercase;">CHRISTOPHER QUEEN</a><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-pF9dd6K4zMo/UDdQljS5IYI/AAAAAAAAAx4/MCMib3Wyqyk/s1600/ambedkar_buddha_deeksha_20120820.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="366" src="http://1.bp.blogspot.com/-pF9dd6K4zMo/UDdQljS5IYI/AAAAAAAAAx4/MCMib3Wyqyk/s400/ambedkar_buddha_deeksha_20120820.jpg" width="400" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="color: #666666; font-family: Arial; font-size: 11px; text-align: left;">Ambedkar at his Dhamma Deeksha, 1956</span>
</td></tr>
</tbody></table>
<br />
<br />
<div class="fsptext" id="divouterfullstorytext" style="font-family: Arial; font-size: 13px; margin-top: 10px;">
<div id="ctl00_cphpagemiddle_reparticle_ctl00_divfullstorytext" style="border: 0px solid rgb(204, 204, 204); margin-right: 3px; vertical-align: top;">
<span style="font-family: Arial;">Y</span>oung Bhim Ambedkar met the Buddha for the first time at a party in Bombay. As the only untouchable student at Elphinstone High School, Ambedkar caused a stir when he passed his matriculation exam in 1907. A graduation party was organised by Krishna Arjun ‘Dada’ Keluskar, author, activist and principal of nearby Wilson High School. Keluskar had seen Ambedkar reading alone in the Churni Road Garden and finally asked him who he was. The boy, born of Mahar parents in an army camp, explained that upper-caste students at Elphinstone bullied him and that he retreated to the park with a book. The teacher recognised the boy’s promise and began helping him with his studies.<br />
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; margin-left: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-9YNhzuhRzVA/UDdQ4cwrYlI/AAAAAAAAAyA/9pno9vcV5-I/s1600/christopher_queen_thumb.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-9YNhzuhRzVA/UDdQ4cwrYlI/AAAAAAAAAyA/9pno9vcV5-I/s1600/christopher_queen_thumb.jpg" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><a class="fspprintsavelinks2" href="http://www.outlookindia.com/peoplefnl.aspx?pid=14346&author=Christopher+Queen" style="color: black; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 11px; text-align: start; text-decoration: none; text-transform: uppercase;">CHRISTOPHER QUEEN</a>
</td></tr>
</tbody></table>
At the party, Keluskar gave him a copy of his <em>Life of the Buddha</em>, written in Marathi for the Baroda Sayajirao Oriental Series. Sayajirao provided Ambedkar financial aid, employment and finally full support to attend Columbia University, where Ambedkar earned his first doctorate and discovered that a society could be organised around the notions of liberty, equality and fraternity.<br />
More than the influence of early mentors and institutions, it was the life and teachings of the Buddha, first presented in Keluskar’s slim volume, that made the most impact. After the party, he recalled years later, “I...was greatly impressed and moved by it.” In the following decades, as he launched the untouchable civil rights movement, represented his community in the negotiations with the British and the Congress, served as the first law minister and principal draftsman of the Constitution, Ambedkar never forgot the vision of personal striving and social transformation he first encountered in the person of the Buddha.<br />
Who was the Buddha that impressed Ambedkar so much? Ambedkar reflected deeply on this, and declared in 1950 that Buddhism was the only religion that could meet the requirements of the modern world—wisdom, compassion, and social justice. And we know that in the last, illness-ridden five years of his life, he devoted his remaining energy to the study of Buddhism.<br />
The fruit of Ambedkar’s final labours is <em>The Buddha and His Dhamma</em>, a daring interpretation of traditional teachings. Venerated by ex-untouchables and millions practising ‘Navayana’ Buddhism, it tells the story of the earthly Buddha and summarises his teachings. This manifesto brings out the social teachings that Ambedkar believed were suppressed by misunderstanding and distortion. Gautama’s welcoming all to his new religious community is there. But so is Ambedkar’s critique of four famous items in the traditional presentation of Buddhism.<br />
Ambedkar doubted that a 29-year-old prince would have abandoned his duties after seeing a sick person, an old person, a corpse and a sadhu. The Four Noble Truths “are a great stumbling block”, attributing all human suffering to desire and craving. Are the poor to be blamed for craving food? Traditional notions of karma and rebirth clearly pose a contradiction of the core teaching of no-self (anatta) and another justification for the caste system, in which low-birth results from bad behaviour in a past life—again blaming victims of social exploitation. Finally, should not the clergy serve society, or should they only study and meditate? These questions “must be decided not so much in the interest of doctrinal consistency but in the interest of the future of Buddhism”.<br />
Ambedkar’s Buddha is based on meticulous study of the Pali record as well as scores of modern commentaries he collected. And this Buddha is a path-giver (marga-data), not a rescuer (moksha-data); he is all-compassionate (maha-karunika); and he is opposed to superstition and speculation. He is awakened by definition—rational, practical, and rooted in present realities. But he is also engaged—committed to social change and justice, and, if necessary, non-violent social revolution. This is the Buddha that has inspired a new generation of socially engaged Buddhists across the world.<br />
Was this the Buddha young Bhim met at his graduation party? Or has the Buddha of old found new voices in a dangerous new world?<br />
<hr color="#CCCCCC" size="1px" />
<em>(Christopher Queen teaches Buddhism and Social Change and World Religions at Harvard University.)</em></div>
</div>
<div class="fsppaginationnos" id="ctl00_cphpagemiddle_reparticle_ctl00_divpagination" style="border: 0px solid rgb(204, 204, 204); color: #666666; font-family: Arial; font-size: 7pt; text-transform: uppercase;">
</div>
<br class="Apple-interchange-newline" />
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Source:<br />
<a href="http://www.outlookindia.com/article.aspx?281946">http://www.outlookindia.com/article.aspx?281946</a>
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