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Friday, 11 June 2010

दलित विमर्श के उपयोगी लेख: तद्भव पत्रिका के दलित विशेषांक से साभार

"वह समाज मरा हुआ है जिसका अपना साहित्य नहीं है, साहित्य ही समाज को जिन्दा रखता है" -चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञासु
प्रिय प्रबुद्ध जन,

इस पोस्ट में दलित विमर्श से सम्बन्धी कुछ लेखों एवं आलेखों का संग्रह दिया जा रहा है जिसे तद्भव पत्रिका के दलित विशेषांक में प्रकाशित किया गया है तथा इसके लिए हम बहुत आभारी है |

"आर्यों से युद्ध करने वाले अनार्य कौन थे" आलेख हिन्दू पौराणिक कथाओं में कपोल कल्पना से स्थापित तथ्यों से परे एक नए एतिहासिक सत्य एवं इन पौराणिक कथाओं की विसंगतियों का उद्घाटन करता है | "शुद्र और आर्य" शुद्र और आर्यों का हिन्दू शास्त्रगत तथ्यों का विश्लेषण है | सनातन हिन्दुओं की जन्मजात वर्ण व्यवस्था के समर्थक गाँधी द्वारा दकियानूसी आपत्तियों एवं सवालों के आंबेडकर के सटीक जबाबों का भी संकलन है | कँवल भारती के लेख में दलित आन्दोलन को बौद्ध धम्म से संदर्भित किया गया है | इस के अलावा खुलासा, झूठी आज़ादी, चमचा युग, जातिवाद का विरोध, साम्प्रदायिकता का निवारण, तस्वीर का दूसरा पहलु, दलित सैद्धांतिकी के अंतर्विरोध, आदिवासी साहित्य की उपस्थिति जैसे यथार्थपरक एवं सत्योद्घाटक लेख भी है जिन्हें आप स्वयं पढ़ ही सकते हैं |

इन लेखों की सूचि नीचे दी गयी है, जहाँ से आप इन्हें पढ़ सकते है, डाउनलोड भी कर सकते हैं:


आप निश्चित ही इन लेखों से लाभान्वित होंगे एवं यथार्थ सत्य से भी अवगत होंगे, ऐसी आशा की जाती है | आप पाएंगे की इन लेखों में जो अनूदित एवं अनकहा सत्य निहित है वह तमाम सनातन हिन्दू धर्मी एवं ब्राह्मणवाद से ग्रसित अंधविश्वासों, दकियानूसी विचारों, पूर्वाग्रहों, सामाजिक विसंगतियों, कुरीतियों तथा थोपे गए तथ्यों का खंडन करता है एवं उन पर मार्मिक प्रहार भी करता है |


साभार:
तद्भव पत्रिका: दलित विशेषांक 
http://www.tadbhav.com/dalit_issue

Monday, 7 June 2010

बुद्ध अवतार नहीं, एक महा मानव थे

हिंदू धर्म में अवतारवाद एक महत्वपूर्ण मान्यता है। इसके अनुसार विष्णु सज्जनों के उद्धार, पापकर्मों के विनाश व धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। हिंदुओं के धर्म ग्रंथ गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है, ‘जब-जब धर्म की हानि व अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हूं एवं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं। साधु पुरुषों का उद्धार करने व पाप-कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए व धर्म की स्थापना हेतु मैं प्रकट होता हूं।’

अवतारवाद के इस सिद्धांत का आश्रय लेकर कुछ लोग बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार बताते हैं। जब भारत में बौद्ध धर्म का बोलबाला था, उस समय पुराणों की रचना करने वाले बुद्ध की उपेक्षा नहीं कर सके। उस समय के धार्मिक और सामाजिक वातावरण ने पुराणों के निर्माताओं को, बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार मानने के लिए बाध्य कर दिया।

यहां यह बताना आवश्यक है कि कुछ ही पुराण बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हैं, बाकी सब दत्तात्रेय को नौवां अवतार स्वीकार करते हैं। विष्णु के नौवें अवतार की अनसुलझी मान्यता एक विरोधाभास उत्पन्न करती है।

स्वामी विवेकानंद, बुद्ध के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे, इसलिए उन्होंने बुद्ध को अवतार ही नहीं, बल्कि ईश्वर तक कह डाला, जबकि अवतार और ईश्वर में जमीन-आसमान का अंतर होता है। स्वामी विवेकानंद का बुद्ध को ईश्वर कहना इतिहास एवं बौद्ध धर्म की मान्यताओं के विरुद्ध है।

महर्षि दयानंद ने ईश्वर की परिभाषा की है, ‘ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, अजन्मा, न्यायकारी, दयालु, अनंत, निर्विकार, अनादि, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।’ बुद्ध मनुष्य होने के कारण चार भौतिक तत्वों -पृथ्वी, जल, तेज व वायु से बने थे। ईश्वर के लिए बताए गए गुणों में से बुद्ध पर केवल न्यायकारी, दयालु, निर्विकार, अभय व पवित्र जैसे विशेषण ही लागू होते हैं। लेकिन वे निराकार, अजन्मा, अनादि, अनंत, अजर, अमर, नित्य एवं सृष्टिकर्ता नहीं थे। इसलिए भी बुद्ध को ईश्वर कहना युक्तिसंगत नहीं होगा।

भारत के पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि बुद्ध पौराणिक अवतार नहीं, बल्कि ऐतिहासिक पुरुष थे। बुद्ध ने स्वयं को श्रीकृष्ण की तरह न तो ईश्वर ही कहा और न विष्णु का अवतार ही बताया। उन्होंने अपने को शुद्धोदन व महामाया के प्राकृतिक-पुत्र होने के अतिरिक्त कभी और कोई दावा नहीं किया।

जिस प्रकार कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाया था, वैसा कोई करिश्मा बुद्ध ने कभी भी अपने शिष्यों को नहीं दिखाया था। उन्होंने कभी खुद को ईश्वर का पैगाम लाने वाला पैगंबर या खुदा का बेटा नहीं बताया। इतना ही नहीं, बुद्ध ने अपने भिक्खुओं को भी करिश्मे व जादू-टोने दिखाकर लोगों को भ्रमित करने से मना किया था। बुद्ध के उपदेश प्रज्ञा, शील, समाधि पर निर्भर करते हैं, जिनका आधार विशुद्ध वैज्ञानिक है।

बुद्ध ने अपने ‘धम्म-शासन’ में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कभी ईश्वरीय होने का दावा नहीं किया था। उनका धर्म ईश्वरीय उपदेश नहीं, बल्कि मनुष्यों के हित व सुख के लिए मनुष्य द्वारा आविष्कृत धर्म था। यह अपौरुषेय नहीं है। जो धर्म अवतारवाद के सिद्धांत को मानते हैं, वे परा-प्रकृति (ब्रह्मा आदि) में विश्वास करते हैं। लेकिन बुद्ध अवतारवाद पर विश्वास नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने परा-प्रकृति में विश्वास को अधर्म कहा था। उदाहरण के लिए जगत में जब कोई घटना घटती है, तो परा-प्रकृति पर विश्वास करने वाले उसे हरि-इच्छा कहते हैं, लेकिन बुद्ध के अनुसार इन घटनाओं के समुचित प्राकृतिक कारण होते हैं। ये सभी घटनाएं कारण-कार्य के नियम से घटती रहती हैं।

आज विश्व के जितने भी प्रसिद्ध वैज्ञानिक व महान दार्शनिक हैं, वे बुद्ध को विष्णु का अवतार नहीं, बल्कि महामानव मानते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आंइस्टीन, पंडित राहुल सांकृत्यायन, डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन, कामरेड लेनिन, डॉ. अंबेडकर, पंडित जवाहर लाल नेहरू आदि जैसे लोग व दुनिया के सभी इतिहासकार बुद्ध को अन्य मनुष्यों की भांति मनुष्य ही मानते हैं। चूंकि वे मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ, पुरुषोत्तम एवं महानतम प्रज्ञावान, शीलवान, मैत्रीवान एवं करुणा के सागर थे, इसलिए उन्हें महामानव कहा जाता है।

श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, जापान, कोरिया, विएतनाम, मंगोलिया, चीन, ताइवान, तिब्बत व भूटान आदि बौद्ध देशों के लोग बुद्ध को ईश्वर एवं विष्णु का अवतार नहीं मानते। भारत के हिंदुओं को छोड़ कर शेष विश्व बुद्ध को महा मानव ही कहता है।



सन्दर्भ एवं आभार:

http://webvarta.com/script_detail.php?script_id=221&news_id=7

Saturday, 5 June 2010

दलितों का गौरवमयी इतिहास









 सन्दर्भ एवं आभार:-

Begumpura Shaher weekly 9 November 2009:

शीर्षक: "दलितों का गौरवमयी इतिहास है" -निर्मल अम्बेडकरी , अनुवादिका- रेणु बद्धन

5 जून को इस साईट पर खोजा गया: http://www.gururavidassguruji.com/news.htm

Tuesday, 1 June 2010

बुद्ध और उनका धम्म

Buddha and Dhamma in Hindi - बुद्ध और उनका धम्म - डॉ बी आर अम्बेडकर


वाराणसी के पास सारनाथ का महान स्तूप, जहाँ कहा जाता है कि बुद्ध ने पहला धर्मोपदेश दिया .



* अनुवादकीय *


* संपादक का परिचय *


* लेखक की अप्रकाशित प्रस्तावना *

* परिचय *


* प्रस्तावना *
    
बुक एक : सिद्धार्थ गौतम - कैसे एक बोधिसत्त बुद्ध बने
* भाग I - जन्म से परिव्रज्या तक *
* भाग II - हमेशा के लिए त्याग *
* भाग III - सत्य की खोज में *
* भाग IV - सम्बोधि और नवीन पथ का दृष्टिकोण *
* भाग V - बुद्ध और उनके पूर्वज *
* भाग VI - बुद्ध और उनके समकालीन पुरुष *
* भागVII - तुलना एवं विरोधाभास *
बुक दो : धम्म परिवर्तन अभियान
* भाग I - बुद्ध और उनका विषद योग *
* भाग II - परिव्रजको का धम्म पर्रिवर्तन *
* भाग III - उच्च और पवित्र परिवर्तन *
* भाग IV- घर से बुलावा *
* भाग V - धम्म परिवर्तन अभियान की पुन: शुरुआत *
* भागVI - निम्नतर स्तर के लोगों का परिवर्तन *
* भाग VII - महिलाओं का परिवर्तन *
* भाग VIII - असभ्य और अपराधियों का परिवर्तन *
बुक तीन : बुद्ध का दर्शन - बुद्ध की शिक्षा
* भाग I - धम्म में उनकी अपनी जगह *
* भाग II - बौद्ध धम्म के विभिन्न दृष्टिकोण *
* भाग III - धम्म क्या है? *
* भाग IV - धम्म क्या नहीं है? *
* भाग V - सधम्म क्या है? *
बुक चार : धर्म और धम्म
* भाग I - धर्म और धम्म *
* भाग II - शब्दावली में समानताएँ कैसे मौलिक अंतर को छिपाती हैं *
* भाग III : बुद्ध का जीवन दर्शन *
* भाग IV - बुद्ध के उपदेश *
बुक पांच : संघ की भूमिका
* भाग I - संघ की भूमिका *
* भाग II : भिक्खु (भिक्षु) - बुद्ध की स्वयं के बारे में अवधारणा *
* भाग III : भिक्खु (भिक्षु) का कर्तव्य *
* भाग IV : भिक्खु और समाज *
* भाग V : समाज के लिए विनय की भूमिका *
बुक छह : बुद्ध और उनके समकालीन पुरुष
* भाग I - उनके संरक्षक *
* भाग II - उनके दुश्मन *
* भाग III - बौद्ध दर्शन के आलोचक *
* भाग IV - मित्र और प्रशंसक गण *
बुक सात : निर्वाण की अंतिम यात्रा
* भाग I - प्रिय और नजदीकी लोगों का सम्मलेन *
* भाग II - वैशाली का त्याग *
* भाग III - महापरिनिर्वाण *
बुक आठ : सिद्धार्थ गौतम - एक व्यक्ति
* भाग I - बुद्ध का व्यक्तित्व *
* भाग II - बुद्ध की मानवता *
* भाग III - बुद्ध ने क्या पसंद किया और क्या नापसंद किया ? *
* उपसंहार *

Saturday, 29 May 2010

डा. अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ

डा. बी आर अम्बेडकर द्वारा
 धम्म परिवर्तन के अवसर पर
 अनुयायियों को दिलाई गयीं  22 प्रतिज्ञाएँ

डा बी.आर. अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि, नागपुर, भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर,15 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं.800000 लोगों का बौद्ध धर्म में रूपांतरण ऐतिहासिक था क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक रूपांतरण था.उन्होंने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके.ये 22 प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं. ये एक सेतु के रूप में बौद्ध धर्मं की हिन्दू धर्म में व्याप्त भ्रम और विरोधाभासों से रक्षा करने में सहायक हो सकती हैं.इन प्रतिज्ञाओं से हिन्दू धर्म,जिसमें केवल हिंदुओं की ऊंची जातियों के संवर्धन के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया, में व्याप्त अंधविश्वासों, व्यर्थ और अर्थहीन रस्मों, से धर्मान्तरित होते समय स्वतंत्र रहा जा सकता है. प्रसिद्ध 22 प्रतिज्ञाएँ निम्न हैं:
  1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
  2. मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
  3. मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
  4. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ
  5. मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ
  6. मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.
  7. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा
  8. मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा
  9. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ
  10. मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा
  11. मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा
  12. मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
  13. मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
  14. मैं चोरी नहीं करूँगा.
  15. मैं झूठ नहीं बोलूँगा
  16. मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
  17. मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
  18. मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.
  19. मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ
  20. मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
  21. मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).
  22. मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा.

Wednesday, 19 May 2010

बुद्ध और उनका धम्म- अनुवादकीय

अनुवादकीय 

यह पुस्तक डॉ बी आर अम्बेडकर द्वारा मूल रूप से अंग्रेजी में लिखित "Buddha and His Dhamma"  का सरल हिंदी रूपांतर है | इस रूपांतरण का मूल सन्दर्भ कोलंबिया उनिवर्सिटी की साईट www.columbia.edu    से   लिया  गया है जिसका वेब एड्रेस http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/ambedkar_buddha/index.html  है |

इस पुस्तक को अनुवादित करने में Google Translator Toolkit की सहायता ली गयी है , जिससे अनुवादन कार्य आसान हो गया है | इस स्व-अनुवादन में सुधार कार्य आवश्यक है , जो किया जा रहा है तथा प्रगति पर है | इस कार्य में अति रूचि रखने वाले अंग्रेजी व हिंदी जानने वाले इस अनुवादन कार्य को सुधारने में सहयोग दे सकते है | इसके लिए Google Translator Toolkit का उपयोग किया जा सकता है , जिससे अंग्रेजी के वेब पृष्ठ अपलोड किये जा सकते हैं | यह पृष्ठ Google Translator Toolkit द्वारा स्वत: ही अनुवादित कर दिया जायेगा | इस अनुवाद को अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए सुधार की आवश्यकता होगी |

हालाँकि उचित  अनुवादन एवं सुधार के लिए यथोचित प्रयास किया जा रहा है , फिर भी किसी त्रुटि के लिए अनुवादक गण ही जिम्मेदार है | यदि लेखक की अंग्रेजी की  मूल पुस्तक में निहित तथ्य एवं सन्देश को संप्रेषित करने में असमर्थता होती है तो उसे इस अनुवादन की ही कमजोरी समझा जाये |

सम्बुद्ध एवं प्रबुद्ध पाठको से इस अनुवादन सुधार कार्य में सहयोग के लिए आग्रह एवं अपेक्षा की जाती है,  किसी भी सम्बंधित अनुवाद या अनुवादांश को buddhambedkar@gmail.comm पर संप्रेषित किया जा सकता है तथा यह भी अपेक्षा की जाती है की समस्त पाठकों के लिए यह प्रयास उपयोगी सिद्ध होगा |

      - अनुवादक गण 
 

Monday, 19 April 2010

Tipiṭaka Related Hindi Publications by the Vipassana Research Institute


Hindi publications of Vipassana Research Institute related to the Tipitaka available online. Kindly download and install the Acrobat Reader to enable you to access it. Clicking on the book links will take you to the Table of contents and clicking on the topics will take you to the page containing the respective topics.
1. Suttasaar in three volumes - Essence in short of the various suttas from the Tipitaka
2. Dhammapada Pali with hindi translation of this important book from the cannon is very valuable.
3. Dhammavani sangraha Inspiring couplets in pali with hindi translations.
4. Anguttara Nikaya - volume 1 - A Hindi translation of a part of the Sutta pitaka of the pali cannon
Reference:

Wednesday, 31 March 2010

सुत्तसार (पाली त्रिपिटक से - हिन्दी में)

Suttasaar Volume 1: Digha Nikaya & Majjhima Nikaya







Suttasaar Volume 2: Samyutta Nikaya







Suttasaar Volume 3: Anguttara Nikaya & Khuddaka Nikaya





To view other documents in hindi from Pali Tripitik visit Hindi Publication related to Tipitaka

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