बुद्धं शरणम गच्छामि ! धम्मं शरणम गच्छामि ! संघम शरणम गच्छामि !
जय भीम ! जय बुद्ध ! जय भारत !
Leberty, Equality and Fraternity !
Educate, Agitate and Organize !
Loading

Sunday, 14 October 2012

14 अक्तूबर: दीक्षा दिवस पर विशेष - एस आर दारापुरी

आज दीक्षा दिवस है। इस दिन डॉ आंबेडकर ने 5 लाख अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी और धम्म चक्र को पुनः प्रचालित किया था। यह महान अशोक के बाद दुनिया में पहली ऐतिहासिक घटना थी जब किसी एक व्यक्ति के आह्वान पर इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने धर्म परिवर्तन किया हो।
वास्तव में यह धर्म परिवर्तन नहीं था क्योंकि यह तो अछूतों की बौद्ध धम्म में वापसी थी। डॉ आंबेडकर ने अपनी खोज पूर्ण पुस्तक " अछूत कौन और कैसे" में तथ्यों सहित यह सिद्ध किया है कि अछूतों के पूर्वज बौद्ध धम्म के अनुयायी थे और बाद में उन्हें बौद्ध धम्म और गोमाँस भक्षण न छोड़ने के अछूत बना कर दण्डित किया गया था। डॉ आंबेडकर द्वारा धम्म परिवर्तन से पहले और बाद में भी हिन्दुओं और कुछ दलित नेताओं द्वारा इस का यह कह कर विरोध किया गया था कि इस से दलितों का कोई भला होने वाला नहीं है। इस सम्बन्ध में बी एस पी के नेता कांशी राम की भी यही धारणा थी। बाबा साहेब के धम्म परिवर्तन आन्दोलन के फलस्वरूप 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में बौद्धों (नव बौद्धों ) की आबादी लगभग 80 लाख थी जो भारत की कुल आबादी का 0.8 प्रतिशत थी। अब 2011 की जनगणना में इसके काफी बढ जाने की उम्मीद है। जो लोग बाबा साहेब के बौद्ध धम्म में दलितों की वापसी आन्दोलन का विरोध करते थे उस के उतर में निम्नलिखित लेख से स्पष्ट है कि जिन दलितों ने बौद्ध धम्म अपनाया है उन्होंने हिन्दू दलितों की अपेक्षा बहुत तरक्की की है जो कि बाबा साहेब के आन्दोलन की सार्थकता को सिद्ध करता है


नव बौद्ध हिन्दू दलितों से बहुत आगे
डॉ.  एस आर दारापुरी

डॉ. बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर ने ३१ मई , १९३६ को दादर (बम्बई ) में "धर्म परिवर्तन क्यों? " विषय पर बोलते हुए अपने विस्तृत भाषण में कहा था , " मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ कि मनुष्य धर्म के लिए नहीं बल्कि धर्म मनुष्य के लिए है. अगर मनुष्यता की प्राप्ति करनी है तो धर्म परिवर्तन करो. समानता और सम्मान चाहिए तो धर्म परिवर्तन करो. स्वतंत्रता से जीविका उपार्जन करना चाहते हो धर्म परिवर्तन करो . अपने परिवार और कौम को सुखी बनाना चाहते हो तो धर्म परिवर्तन करो." इसी तरह १४ अक्टूबर, १९५६ को धर्म परिवर्तन करने के बाद बाबा साहेब ने कहा था, " आज मेरा नया जन्म हुआ है."

आईए अब देखा जाये कि बाबा साहेब ने धर्म परिवर्तन के जिन उद्देश्यों और संभावनाओं का ज़िकर किया था, उन की पूर्ती किस हद तक हुयी है और हो रही है. सब से पहले यह देखना उचित होगा कि बौद्ध धर्म परिवर्तन कि गति कैसी है. सन २००१ की जन गणना के अनुसार भारत में बौद्धों की जनसँख्या लगभग ८० लाख है जो कि कुल जन संख्या का लगभग ०.८ प्रतिशत है. इस में परम्परागत बौद्धों की जन संख्या बहुत ही कम है और यह हिन्दू दलितों में से धर्म परिवर्तन करके बने नव बौद्ध ही हैं. इस में सब से अधिक बौद्ध महाराष्ट्र में ५८.३८ लाख, कर्नाटक में ४.०० लाख और उत्तर प्रदेश में ३.०२ लाख हैं. सन १९९१ से सन २००१ की अवधि में बौद्धों की जनसँख्या में २४.५४% की वृद्धि हुयी है. जो कि बाकी सभी धर्मों में हुयी वृद्धि से अधिक है. इस से स्पष्ट है कि बौद्धों की जन संख्या में भारी मात्रा में वृद्धि हुयी है.

अब अगर नव बौद्धों में आये गुणात्मक परिवर्तन की तुलना हिदू दलितों से की जाये तो यह सिद्ध होता है कि नवबौद्ध हिन्दू दलितों से बहुत क्षेत्रों में बहुत आगे बढ़ गए हैं जिस से बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन के उद्धेश्यों की पूर्ती होने की पुष्टि होती है. अगर सन २००१ की जन गणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर नव बौद्धों की तुलना हिन्दू दलितों से की जाये तो नव बौद्ध निम्नलिखित क्षेत्रो में हिन्दू दलितों से बहुत आगे पाए जाते हैं:-

१. लिंग अनुपात :- नव बौद्धों में स्त्रियों और पुरुषों का अनुपात ९५३ प्रति हज़ार है जबकि हिन्दू दलितों में यह अनुपात केवल ९३६ ही है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की स्थिति हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी है. नव बौद्धों में महिलायों का उच्च अनुपात बौद्ध धर्म में महिलायों के समानता के दर्जे के अनुसार ही है जबकि हिन्दू दलितों में महिलायों का अनुपात हिन्दू धर्म में महिलायों के निम्न दर्जे के अनुसार है. नव बौद्धों में महिलायों का यह अनुपात हिन्दुओं के ९३१, मुसलमानों के ९३६, सिक्खों के ८९३ और जैनियों के ९४० से भी अधिक है.

२. बच्चों (०-६ वर्ष तक ) का लिंग अनुपात:- उपरोक्त जन गणना के अनुसार नव बौद्धों में ०-६ वर्ष तक के बच्चों का लड़कियों और लड़कों का लिंग अनुपात ९४२ है जब कि हिन्दू दलितों में यह अनुपात ९३५ है. यहाँ भी लड़के और लड़कियों का लिंग अनुपात धर्म में उन के स्थान के अनुसार ही है. नव बौद्धों में यह अनुपात हिन्दुओं के ९३१, मुसलामानों के ९३६, सिक्खों के ८९३ और जैनियों के ९४० से भी ऊँचा है.

३. शिक्षा दर :- नव बौद्धों में शिक्षा दर ७२.७ % है जबकि हिन्दू दलितों में यह दर सिर्फ ५४.७ % है. नव बौद्धों का शिक्षा दर हिन्दुओं के ६५.१ % , मुसलमानों के ५९.१ % और सिक्खों के ६९.७ % से भी अधिक है. इस से स्पष्ट तौर से यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म में ज्ञान और शिक्षा को अधिक महत्त्व देने के कारण ही नव बौद्धों ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी तरक्की की है जो कि हिन्दू दलितों कि अपेक्षा बहुत अधिक है.

४. महिलायों का शिक्षा दर:- नव बौद्धों में महिलायों का शिक्षा दर ६१.७ % है जब कि हिन्दू दलितों में यह दर केवल ५४.७ % ही है. नव बौद्धों में महिलायों का शिक्षा दर हिन्दू महिलायों के ५२.३ %, और मुसलमानों के ५०.१ % से भी अधिक है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की शिक्षा कि ओर अधिक ध्यान दिया जाता है.

५. कार्य सहभागिता दर:- नव बौद्धों में कार्य सहभागिता दर ४०.६ % है जब कि हिन्दू दलितों में यह दर ४०.४ % है. नव बौद्धों का कार्य सहभागिता दर हिन्दुओं के ४०.४, मुसलमानों के ३१.३, ईसाईयों के ३९.७, सिखों के ३७.७ और जैनियों के ३२.७ % से भी अधिक है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्ध बाकी सभी वर्गों के मुकाबले में नियमित नौकरी करने वालों की श्रेणी में सब से आगे हैं जो कि उनकी उच्च शिक्षा दर के कारण ही संभव हो सका है. इस कारण वे हिन्दू दलितों से आर्थिक तौर पर भी अधिक संपन्न हैं.

उपरोक्त तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि नव बौद्धों में लिंग अनुपात, शिक्षा दर, महिलायों का शिक्षा दर और कार्य सहभागिता की दर न केवल हिन्दू दलितों बल्कि हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों और जैनियों से भी आगे है. इस का मुख्य कारण उन का धर्म परिवर्तन करके मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर प्रगतिशील होना ही है.
इस के अतिरिक्त अलग अलग शोध कर्ताओं द्वारा किये गए अध्ययनों में यह पाया आया है कि दलितों के जिन जिन परिवारों और उप जातियों ने डॉ. आंबेडकर और बौद्ध धर्म को अपनाया है उन्होंने हिन्दू दलितों की अपेक्षा अधिक तरक्की की है. उन्होंने ने पुराने गंदे पेशे छोड़ कर नए साफ सुथरे पेशे अपनाये हैं. उन में पढाई की ओर अधिक झुकाव पैदा हुआ है. वे भाग्यवाद से मुक्त हो कर अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं. वे जातिगत हीन भावना से मुक्त हो कर अधिक स्वाभिमानी हो गए हैं. वे धर्म के नाम पर होने वाले आर्थिक शोषण से भी मुक्त हुए हैं और उन्होंने अपनी आर्थिक हालत सुधारी है. उनकी महिलायों और बच्चों की हालत हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी है.

उपरोक्त संक्षिप्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म ही वास्तव में दलितों के कल्याण और मुक्ति का मार्ग है . नव बौद्धों ने थोड़े से समय में हिन्दू दलितों के मुकाबले में बहु तरक्की की है, उन की नव बौद्धों के रूप में एक नयी पहिचान बनी है. वे पहिले की अपेक्षा अधिक स्वाभिमानी और प्रगतिशील बने है. उन का दुनिया और धर्म के बारे नजरिया अधिक तार्किक और विज्ञानवादी बना है. नव बौद्धों में धर्म परिवर्तन के माध्यम से आये परिवर्तन और उन द्वारा की गयी प्रगति से हिन्दू दलितों को प्रेरणा लेनी चाहिए. उन को हिन्दू धर्म की मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर नव बौद्धों की तरह आगे बढ़ना चाहिए. वे एक नयी पहिचान प्राप्त कर जातपात के नरक से बाहर निकल कर समानता और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं. इस के साथ ही नव बौद्धों को भी अच्छे बौद्ध बन कर हिन्दू दलितों के सामने अच्छी उदाहरण पेश करनी चाहिए ताकि बाबा साहेब का भारत को बौद्धमय बनाने का सपना जल्दी से जल्दी साकार हो सके.

साभारः
एस आर दारापुरी
https://www.facebook.com/srdarapuri/posts/10151293277366554

Friday, 24 August 2012

Lit-Again Paths

Ambedkar’s Buddhism is a radical, rational reading of the traditional for our times
                                                                                                                    -CHRISTOPHER QUEEN
Ambedkar at his Dhamma Deeksha, 1956


Young Bhim Ambedkar met the Buddha for the first time at a party in Bombay. As the only untouchable student at Elphinstone High School, Ambedkar caused a stir when he passed his matriculation exam in 1907. A graduation party was organised by Krishna Arjun ‘Dada’ Keluskar, author, activist and principal of nearby Wilson High School. Keluskar had seen Ambedkar reading alone in the Churni Road Garden and finally asked him who he was. The boy, born of Mahar parents in an army camp, explained that upper-caste students at Elphinstone bullied him and that he retreated to the park with a book. The teacher recognised the boy’s promise and began helping him with his studies.
CHRISTOPHER QUEEN
At the party, Keluskar gave him a copy of his Life of the Buddha, written in Marathi for the Baroda Sayajirao Oriental Series. Sayajirao provided Ambedkar financial aid, employment and finally full support to attend Columbia University, where Ambedkar earned his first doctorate and discovered that a society could be organised around the notions of liberty, equality and fraternity.
More than the influence of early mentors and institutions, it was the life and teachings of the Buddha, first presented in Keluskar’s slim volume, that made the most impact. After the party, he recalled years later, “I...was greatly impressed and moved by it.” In the following decades, as he launched the untouchable civil rights movement, represented his community in the negotiations with the British and the Congress, served as the first law minister and principal draftsman of the Constitution, Ambedkar never forgot the vision of personal striving and social transformation he first encountered in the person of the Buddha.
Who was the Buddha that impressed Ambedkar so much? Ambedkar reflected deeply on this, and declared in 1950 that Buddhism was the only religion that could meet the requirements of the modern world—wisdom, compassion, and social justice. And we know that in the last, illness-ridden five years of his life, he devoted his remaining energy to the study of Buddhism.
The fruit of Ambedkar’s final labours is The Buddha and His Dhamma, a daring interpretation of traditional teachings. Venerated by ex-untouchables and millions practising ‘Navayana’ Buddhism, it tells the story of the earthly Buddha and summarises his teachings. This manifesto brings out the social teachings that Ambedkar believed were suppressed by misunderstanding and distortion. Gautama’s welcoming all to his new religious community is there. But so is Ambedkar’s critique of four famous items in the traditional presentation of Buddhism.
Ambedkar doubted that a 29-year-old prince would have abandoned his duties after seeing a sick person, an old person, a corpse and a sadhu. The Four Noble Truths “are a great stumbling block”, attributing all human suffering to desire and craving. Are the poor to be blamed for craving food? Traditional notions of karma and rebirth clearly pose a contradiction of the core teaching of no-self (anatta) and another justification for the caste system, in which low-birth results from bad behaviour in a past life—again blaming victims of social exploitation. Finally, should not the clergy serve society, or should they only study and meditate? These questions “must be decided not so much in the interest of doctrinal consistency but in the interest of the future of Buddhism”.
Ambedkar’s Buddha is based on meticulous study of the Pali record as well as scores of modern commentaries he collected. And this Buddha is a path-giver (marga-data), not a rescuer (moksha-data); he is all-compassionate (maha-karunika); and he is opposed to superstition and speculation. He is awakened by definition—rational, practical, and rooted in present realities. But he is also engaged—committed to social change and justice, and, if necessary, non-violent social revolution. This is the Buddha that has inspired a new generation of socially engaged Buddhists across the world.
Was this the Buddha young Bhim met at his graduation party? Or has the Buddha of old found new voices in a dangerous new world?

(Christopher Queen teaches Buddhism and Social Change and World Religions at Harvard University.)


Source:
http://www.outlookindia.com/article.aspx?281946

Wednesday, 28 March 2012

उत्तर भारत में भी दिखेगा लार्ड बुद्धा टीवी चैनल


दलितों और शोषितों की आवाज बुलंद करने वाला बुद्धा टीवी चैनल अब उत्तर भारत में भी जल्दी ही प्रसारित होगा. इस संबंध में बीते 25 मार्च को चैनल की ओर से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें चैनल को उत्तर भारत में सुचारू ढंग से प्रसारित करने पर चर्चा हुई. कार्यक्रम को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य राज्य और भाषा दोनो दृष्टियों से इस चैनल का प्रसार करना था. कार्यक्रम में बुद्धा टी.वी. चैनल के संस्थापक तथा अध्यक्ष “भैयाजी खेरकर” (महाराष्ट्र), प्रो. विमल थोराट (जे.एन.यू.), अयूर इण्डिया टी.वी. के श्री आर.के. पाशान, उत्तर भारत में बुद्धा टी.वी. चैनल का काम संभालने वाले राजकुमार गौतम (ग़ाज़ियाबाद) सहित डॉ. एस.एन. गौतम और राष्ट्रीय शोषित परिषद के अध्यक्ष जय भगवान जाटव सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे.

  कार्यक्रम को सबसे पहले बुद्धा टी.वी. चैनल के संस्थापक भैयाजी खेरकर ने सम्बोधित किया. उन्होंने चैनल की स्थापना में आने वाली अड़चनों की विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि चैनल प्रसारित करने के लिए केबल ऑपरेटरों ने 50 करोड़ की माँग की थी तथा चैनल को शुरू करने में लगभग 100 करोड़ का आंकड़ा बताया. लेकिन अपनी सूझबूझ और अटल इरादों के बल पर उन्होंने ऐसी अनोखी पहल की जिससे बिना ऑपरेटरों को पैसा बाँटे ही नागपुर से इसके प्रसारण की शुरुआत हो गयी. इस चैनल को शुरू करवाने के लिए खेरकर जी ने अपने सहयोगियों के साथ व्यापक रणनीति बनाते हुए लोगों को इन ब्राह्मणवादी मानसिकता वाले प्रसारकों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया. नागपुर के बौद्ध सहित वहां की जनता ने भी पूरा साथ देते हुए ऑपरेटर्स को धमकियां देना शुरू किया कि यदि उनके सौ चैनल के बदले बौद्धों का एक चैनल प्रसारित नहीं किया गया तो वे लोग अपना कनेक्शन कटवा लेंगे. इस धमकी से प्रसारक बिना शुल्क के ही इस चैनल को प्रसारित करने पर राजी हो गए. नागपुर, अकोला सहित विदर्भ के 11 जिलों में यह चैनल दिखाया जाने लगा. इसी प्रकार महाराष्ट्र के अन्य भागों में भी लोगों ने इसी प्रकार संघर्ष करके इस चैनल की शुरुआत कराई. मुंबई में दादर से इसके प्रसारण की शुरुआत हुई.

खेरकर जी ने ये भी बताया कि चेम्बूर में लगभग 1500 लोग इस चैनल को शुरू कराने के लिए सड़कों पर उतर आये थे. पुणे एवं औरंगाबाद जिलों में प्रशासनिक हस्तक्षेप के द्वारा इस चैनल की शुरुआत कराई गयी. भैयाजी खेरकर ने भारतीय मीडिया पर धर्मनिरपेक्ष न होने का आरोप लगाते हुए कहा कि बोधगया में हर साल लगभग 200 देशों के बौद्ध अनुयायी आते हैं और विशाल एवं भव्य कार्यक्रम होते हैं लेकिन उनका लाइव प्रसारण कभी नहीं दिखाया जाता जबकि नासिक और इलाहाबाद में होने वाले कुम्भ मेलों का लाइव प्रसारण दिखाया जाता है. इसके अतिरिक्त उन्होने बताया कि इस भारतवर्ष पर प्राचीन काल के सभी महापुरुषों में से सर्वाधिक एहसान तथागत बुद्ध का तथा आधुनिक भारत पर बाबा साहब का है लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रस्त भारतीय मीडिया इन बातों को लोगों को न तो बताना चाहती है और न ही दिखाना चाहती है. उन्होने ये भी कहा कि बाबा साहब ने दलितों पर कम, भारतवर्ष पर ज्यादा एहसान किया है लेकिन यहां की तथाकथित चौथा स्तम्भ यानि मीडिया उन्हे केवल दलितों का मसीहा कहकर उनके व्यक्तित्त्व को एकदम सीमित कर देती है.       

इन सभी बातों को घर-घर तक पहुँचाने के लिए उन्होने दिल्ली के प्रबुद्ध वर्ग का आह्वान करते हुए चैनल की शुरुआत के लिए महाराष्ट्र जैसे संघर्ष का नारा बुलन्द किया. कार्यक्रम के एक अन्य वक्ता आर.के. पाशान ने बुद्धा टी.वी. चैनल को चलाने के लिए सबको आगे आकर संघर्ष करने का आह्वान किया. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रो. विमल थोराट ने चैनल की उपयोगिता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान में सारे चैनलों की चाबी या तो ब्राह्मण वर्ग के हाथ में है या फिर उस मानसिकता वाले लोगों के हाथ में है, ऐसी स्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि सारे लोग मिलकर इस चैनल को आरम्भ करवाने के लिए संघर्ष करें और विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए तन-मन-धन से सहयोग के लिए आगे आएं. दिल्ली में चैनल के प्रसारण की जिम्मेदारी संभालने वाले राजकुमार गौतम जी ने बताया कि बुद्धा टी.वी. चैनल की शुरुआत उत्तर प्रदेश में 14 अक्टूबर सन् 2011 को गाजियाबाद से हुई और अब वे इसे पूरे दिल्ली प्रदेश में प्रसारित करवाने के लिए प्रयासरत हैं. अन्य वक्ताओं में फ़िल्म इंस्टीट्यूट पुणे से 1974-75 में ऐक्टिंग के क्षेत्र में स्नातक तथा दलित समाज की एवं महिलाओं की समस्याओं को आवाज देने वाली सुजाता पारमिता, डॉ. एस.एन. गौतम, आसाराम गौतम और जय भगवान जाटव ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया. कार्यक्रम में जवाहरलाल नहरू विश्वविद्यालय के छात्रों एवं अध्यापको सहित दिल्ल्ली तथा आसपास के कई कार्यकर्ता सहित अनेक गण्यमान्य लोग उपस्थित थे.

गौरतलब है कि बुद्धा टी.वी. चैनल की शुरूआत 26 नवम्बर 2010 को दीक्षाभूमि नागपुर से हुई थी. भारत में बौद्ध जगत के प्रसार के लिए उठाया गया यह पहला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है. वर्तमान में यह चैनल 4 राज्यों में प्रसारित हो रहा है. इनमें से पूरे महाराष्ट्र सहित मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के 70% भाग में तथा कर्नाटक के 30% भाग में सुचारू रूप से चल रहा है.
-शत्रुध्न प्रकाश
(साभार : दलित मत @ http://dalitmat.com/index.php/kala-sahitya/1057-lord-buddha-tv-in-north-india.html)

Do you like this post ?

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails

लिखिए अपनी भाषा में

Type in Hindi (Press Ctrl+g to toggle between English and Hindi)

Search in Labels Crowd

22 vows in hindi (1) achhut kaun the (1) adivasi sahitya (1) ADMINISTRATION AND FINANCE OF THE EAST INDIA COMPANYby Dr B R Ambedkar (1) ambedar (1) ambedkar (34) ambedkar 119th birth anniversary (2) ambedkar 22 vows (1) ambedkar and gandhi conversation (1) ambedkar and hinduism (1) ambedkar anniversary (2) ambedkar birth anniversary (2) ambedkar books (18) ambedkar chair (1) ambedkar death anniversary (1) Ambedkar in News (1) ambedkar inspiration (1) ambedkar jayanti (3) ambedkar jayanti 2011 (1) ambedkar life (3) ambedkar literature (11) ambedkar movie (3) ambedkar photographs (2) ambedkar pics (3) ambedkar sahitya (10) ambedkar statue (1) ambedkar vs gandhi (2) ambedkar writings (1) ambedkar's book on buddhism (2) ambedkarism (8) ambedkarism books (1) ambedkarism video (1) ambedkarite dalits (2) anand shrikrishna (1) arising light (1) arya vs anarya true history (1) atheist (1) beginners yoga (1) books about ambedkar (1) books from ambedkar.org (10) brahmnism (1) buddha (33) buddha and his dhamma (15) buddha and his dhamma in hindi (2) buddha jayanti (1) buddha or karl marx (1) buddha purnima (2) Buddha vs avatar (1) Buddha vs incarnation (1) buddha's first teaching day (1) Buddham Sharanam Gacchami (1) Buddham Sharanam Gachchhami (1) buddhanet books (6) buddhism (43) buddhism books (18) buddhism conversion (1) buddhism for children (1) buddhism fundamentals (1) buddhism in india (4) buddhism meditation (1) buddhism movies (1) buddhism video (7) buddhist marriage (1) caste annhilation (1) castes in india (1) castism in india (1) chamcha yug (1) charvak (1) Chatrapati Shahu Bhonsle (1) chinese buddhism (1) dalit (2) dalit and buddhism (1) dalit andolan (1) dalit antarvirodh (1) dalit books (1) dalit great persons (1) dalit history (1) dalit issues (2) dalit leaders (1) dalit literature (1) dalit masiha (1) dalit movement (2) dalit movement in Jammu (1) dalit perspectives on Religion (1) dalit politics (1) dalit reformation (1) dalit revolution (1) dalit sahitya (2) dalit thinkers (1) dalits (2) dalits glorious history (1) dalits in India (1) darvin (1) dhamma (16) dhamma Deeksha (2) digital library of India (1) docs (1) Dr Babasaheb - untold truth (1) Dr Babasaheb movie (2) federation vs freedom (1) four sublime states (1) freedom for dalits (1) gandhi vs ambedkar (1) google docs (1) guru purnima (1) hindi posts (8) hindu riddles (1) hinduism (1) in hindi (1) inter-community relations (1) Jabbar Patel movie on Ambedkar (1) jati varna system (1) just be good (1) kanshiram (1) karl marx (1) lenin (1) literature (4) lodr buddha tv (1) lord buddha (1) meditation (9) meditation books (1) meditation video (6) mindfilness (1) navayan (1) news (1) Nyanaponika (1) omprakash valmiki (1) online books about ambedkar (1) pali tripitik (2) parinirvana (1) periyar (1) pics (3) Poona Pact (1) poona pact agreement (1) prakash ambedkar (1) Prof Tulsi Ram (1) quintessence of buddhism (1) ranade gandhi and jinnah (2) sahitya (1) sampradayikta (1) savita ambedkar (1) Sayaji Rao Gaekwar (1) secret buddhism (1) secularism (1) self-realization (1) sukrat (1) Suttasaar (1) swastika (1) teesri azadi movie (1) tipitaka (1) torrent (1) tribute to ambedkar (1) Tripitik (2) untouchables (2) vaisakh purnima (1) video (7) video about ambedkar (1) Vipassana (5) vipassana books (1) vipassana video (3) vipasyana (3) vivek kumar interview (1) well-being (1) what buddha said (13) why buddhism (1) Writings and Speeches (1) Writings and Speeches by Dr B R Ambedkar (11) yoga (5) yoga books (1) yoga DVD (2) yoga meditation (2) yoga video (4) yoga-meditation (9) अम्बेडकर जीवन (1) बुद्ध और उसका धम्म (2) स्वास्तिक (1) हिंदी पोस्ट (24)

Visitors' Map


Visitor Map
Create your own visitor map!

web page counter