डाॅ0 अम्बेडकर का स्पष्ट मानना था कि राजनैतिक स्वतंत्रता से पूर्व सामाजिक एवं आर्थिक समानता जरूरी है। महात्मा गाँधी और डाॅ0 अम्बेडकर दोनों ने ही जाति व्यवस्था की कुरीतियों को समाप्त करने की बात कही पर जहाँ डाॅ0 अम्बेडकर का मानना था कि सम्पूर्ण जाति व्यवस्था को समाप्त करके ही बुराइयों को दूर किया जा सकता है वहीं महात्मा गाँधी के मत में शरीर में एक घाव मात्र हो जाने से पूरे शरीर को नष्ट कर देना उचित नहीं अर्थात पूरी जाति व्यवस्था को खत्म करने की बजाय उसकी बुराईयों मात्र को खत्म करना उचित होता। डाॅ0 अम्बेडकर के मत में मनुस्मृति से पूर्व भी जाति प्रथा थी। मनुस्मृति ने तो मात्र इसे संहिताबद्ध किया और दलितों पर राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक दासता लाद दी।
डाॅ0 अम्बेडकर चातुर्वर्ण व्यवस्था को संकीर्ण सिद्धान्त मानते थे जो कि विकृत रूप में सतहबद्ध गैरबराबरी का रूप है। उन्होंने शूद्रों को आर्यों का ही अंग मानते हुए प्रतिपादित किया कि इण्डो-आर्यन समाज में ब्राह्मणों ने दण्डात्मक विधान द्वारा कुछ लोगों को शूद्र घोषित कर दिया और उन्हें घृणित सामाजिक जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया। नतीजन, शूद्र चातुर्वर्ण की अन्तिम जाति न रहकर नीची जातियाँ घोषित हो र्गइं। इसीलिए वे हिन्दू समाज के उत्थान हेतु दो तत्व आवश्यक मानते थे- प्रथम, समानता और द्वितीय, जातीयता का विनाश। इसी के अनुरूप उन्होंने प्रथम गोलमेज सम्मेलन में सुझाव दिया कि अछूतों को गैर जातीय हिन्दू अथवा प्रोटेस्टेण्ट हिन्दू के रूप में मान्यता दी जाय। उनका कहना था कि - ‘‘अछूत हिन्दुओं के तत्व नहीं हैं बल्कि भारत की राष्ट्रीय व्यवस्था में एक पृथक तत्व हैं जैसे मुसलमान।’’
डाॅ0 अम्बेडकर गाँधी जी के ‘हरिजन’ शब्द से नफरत करते थे क्योंकि दलितों की स्थिति सुधारे बिना धर्म की चाशनी में उन्हें ईश्वर के बन्दे कहकर मूल समस्याओं की ओर से ध्यान मोड़ने का गाँधी जी का यह नापाक नुस्खा उन्हें कभी नहीं भाया। उन्होंने गाँधी जी के इस कदम पर सवाल भी उठाया कि- ‘‘सिर्फ अछूत या शूद्र या अवर्ण ही हरिजन हुए, अन्य वर्णों के लोग हरिजन क्यों नहीं हुए? क्या अछूत हरिजन घोषित करने से अछूत नहीं रहेगा? क्या मैला नहीं उठायेगा? क्या झाडू़ नहीं लगाएगा? क्या अन्य वर्ण वाले उसे गले लगा लेंगे? क्या हिन्दू समाज उसे सवर्ण मान लेगा? क्या उसे सामाजिक समता का अधिकार मिल जायेगा? हरिजन तो सभी हैं, लेकिन गाँधी ने हरिजन को भी भंगी बना डाला। क्या किसी सवर्ण ने अछूतों को हरिजन माना? सभी ने भंगी, मेहतर माना। जिस प्रकार कोई राष्ट्र अपनी स्वाधीनता खोकर धन्यवाद नहीं दे सकता, कोई नारी अपना शील भंग होने पर धन्यवाद नहीं देती फिर अछूत कैसे केवल नाम के लिए हरिजन कहलाने पर गाँधी को धन्यवाद कर सकता है। यह सोचना फरेब है कि ओस की बूंदों से किसी की प्यास बुझ सकती है।’’ अम्बेडकर का मानना था कि वर्ण व्यवस्था का सीधा दुष्प्रभाव भले ही दलितों व पिछड़ों मात्र पर दिखता है पर जब इसी सामाजिक विघटन के कारण देश गुलाम हुआ तो सवर्ण भी बिना प्रभावित हुए नहीं रह सके।
साभार: कृष्ण कुमार यादव @ युवा-मन http://yuva-jagat.blogspot.com/2009/12/0.html
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