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Wednesday, 1 March 2017

Hindu Code Bill

*Hindu Code Bill*
*हिन्दू कोड बिल*
सब पढ़ें विशेषतया महिलाएं 🙍🏻
#HinduCodeBill #buddhambedkar
*बाबासाहेब* ने सविंधान के द्वारा महिलाओं को सारे अधिकार दिए है जो मनुस्मृति ने नकारे थे। हिन्दू धर्मशास्त्रों में महिलाओं का स्थान और नियम-कानून महिलाओं के हक में नहीं हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्त्री धन , विद्या और शक्ति की देवी हैं। मनु संहिता के तीसरे अध्याय के छप्पनवें श्लोक में जहां लिखा है:- ‘‘जहाॅं नारी की पूजा होती है वहां देवता रमण करते हैं।’’ वहीं दूसरी ओर पांचवे अध्याय के 155 वें श्लोक में लिखा है:-‘‘स्त्री का न तो अलग यज्ञ होता है न व्रत होता है , न उपवास। ऋग्वेद में पुत्री के जन्म को दुःख का खान और पुत्र को आकाश का ज्योति माना गया है। ऋग्वेद में ही नारी को मनोरंजनकारी भोग्या रूप का वर्णन है तथा नियोग प्रथा को पवित्र कर्म माना गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि दुनियां की सब महिलाएं शूद्र है। हिन्दु धर्म शास्त्रों में नारी की स्थिति को लेकर काफी विराधाभास है। इस्लाम में भी महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कुरानशरीफ के आयत ( 1-4-11 ) में संपति से संदर्भित मामले में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘ एक मर्द के हिस्सा बराबर है दो औरत का हिस्सा ।’’ भारत मे महिलाओ कि बहोत दयनिय अवस्था थी। मनुस्मृती महिलाओ को किसी भी तरह की आज़ादी नहीं देती थी। इसलिए डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए। महिलाओं को और अधिक अधिकार देने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए सन 1951 में उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया।

*डा. अंबेडकर* का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे. डा. अंबेडकर का दृढ. विश्वास था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में सामाजिक बराबरी का दर्जा मिलेगा. शिक्षा और आर्थिक उन्नति उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी. बबाबासाहब ने संविधान मे महिलाओं को सारे अधिकार दिये लेकिन अकेला संविधान या कानून लोगों की मानसिकता को नहीं बदल सकता, पर सच है कि यह परिवर्तन की राह तो सुगम बनाता ही है। हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने के लिए देश के पहले कानून मंत्री के रूप में आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया।

*दरअसल*, हिंदू कोड बिल पास कराने के पीछे आंबेडकर की हार्दिक इच्छा कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांत स्थापित करने की थी, जिनका उल्लंघन दंडनीय अपराध बन जाए। मसलन, स्त्रियों के लिए विवाह विच्छेद (तलाक) का अधिकार, हिंदू कानून के अनुसार विवाहित व्यक्ति के लिए एकाधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध और विधवाओं तथा अविवाहित कन्याओं को बिना शर्त पिता या पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का हक। उनका आग्रह था कि हिंदू कानून में अंतरजातीय विवाह को भी मान्यता दी जाए। इस बिल में अंतर्निहित ये न्यूनतम सिद्धांत धार्मिक रीति से विवाहित स्त्रियों को इन अधिकारों का इस्तेमाल करने और लाभ प्राप्त करने के अवसर प्रदान करते हैं।

पर देखना यह भी होगा कि आखिर आंबेडकर इस बिल को पास कराने पर इतना जोर क्यों दे रहे थे। उनकी मान्यता थी कि जातिप्रथा को बनाए रखने में महिलाओं की भूमिका निर्विवाद रूप से अहम है। इसलिए हिंदू समाज उन्हें किसी तरह की स्वतंत्रता देने का पक्षधर नहीं है। अगर वह ऐसा करने देता है तो हिंदू समाज की जाति-व्यवस्था तहस-नहस हो सकती है। उनका दृढ़ मत था कि स्त्रियां जातिवाद का प्रवेश द्वार हैं। इसीलिए ब्राह्मणवाद उन पर कब्जा जमाए रखने के लिए जी-जान लगा कर भी उद्यत रहा है। वह जानता है कि उन्हें अधीन बनाए रख कर ही ऊंच-नीच पर आधारित जाति-व्यवस्था कायम रह सकती है। इस तरह हिंदू कोड बिल महिलाओं को पारंपरिक बंधनों से मुक्ति दिलाने की ओर उठाया गया एक ऐसा कदम था जो अंत में हिंदू समाज को जाति और लिंग के कारण पैदा हुई असमानता से मुक्त करा सकता था।

*आंबेडकर* द्वारा अंतरजातीय विवाहों को हिंदू कानूनों के तहत मान्यता दिलाने की कोशिश भी समाज को जाति मुक्त बनाने की योजना का ही एक अंग थी। अगर इसे मान लिया जाता तो, आज हमारी राजनीति जातिवाद से जैसे संकुचित और छिछली होती जा रही है वैसी न होती। आंबेडकर हिंदू कोड बिल के जरिए धार्मिक आचरण के क्षेत्र में प्रगतिशील मूल्यों को रख कर निजी क्षेत्र को फिर से विधिवत परिभाषित करना और उन सामाजिक आचरणों को बदलने के लिए आधार निर्मित कर देना चाहते थे, जो हिंदुओं के जीवन को विकृत कर रहे थे। उनका यह उद्देश्य अस्पृश्यता रोकने या सबको मंदिरों में जाने देने के लुंजपुंज कानूनों से पूरा नहीं हो सकता था। इस प्रकार हिंदू कोड बिल निजी को राजनीतिक बनाने का एक जोरदार उपक्रम था।
सवर्णों की संस्कृति में परिवारों की पवित्रता और उन्हें बनाए रखने पर जोर इसलिए दिया जाता है, क्योंकि ये पितृसत्ता को पुष्ट कर उन्हें अभय प्रदान करते हैं। असल में स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाने की प्रक्रिया पहले परिवार से ही शुरू होती है। यही प्रक्रिया फिर समाज तक पहुंचती है। सोपानात्मक समाज संरचना इसे आसान बनाती है। इसीलिए आंबेडकर के हिंदू कोड बिल को परिवार तोड़क और समाज के लिए घातक बताया गया था। जबकि वे इस बिल के जरिए पितृसत्ता के दुष्चक्र को भेद कर जाति-व्यवस्था को तहस-नहस करने की कोशिश कर रहे थे।

*हिंदू कोड बिल* में स्त्रियों को तलाक का अधिकार देकर आंबेडकर एक ओर विवाह की अविच्छेद्यता को चुनौती देते तो दूसरी ओर स्त्री को पुरुष के हर अन्याय को सहन करने की बाध्यता से छुटकारा दिलाते हैं। पुरुष के एक विवाहित पत्नी के रहते दूसरा विवाह करने की छूट पर प्रतिबंध लगा कर उसकी मनमानी पर अंकुश लगाते और पत्नी की स्वाधीनता और आत्मसम्मान को संरक्षित करते हैं। इसी तरह स्त्री को पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार दिला कर वे उसकी आर्थिक परनिर्भरता को खत्म कर देना चाहते हैं। बिल के ये तीनों प्रावधान निश्चय ही स्त्री-पुरुष को समान धरातल पर खड़ा कर परिवार के आधार को अधिक मजबूत और पुख्ता करने और सामाजिक समरसता को बढ़ाने वाले हैं।

*बाबासाहेब आंबेडकर* जी ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. लेकिन 1951 को डाॅ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने जैसे ही हिन्दू कोड बिल को संसद में पेश किया। संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया। सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक अंबेडकर के विरोधी हो गए। संसद के अंदर भी काफी विरोध हुआ। अंबेडकर हिन्दू कोड बिल पारित करवाने को लेकर काफी चिंतित थे। वहीं सदन में इस बिल को सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पा रहा था। वह अक्सर कहा करते थे कि:- ‘‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिन्दू कोड बिल पास कराने में है।’’ सच तो यह है कि हिन्दू कोड बिल के जैसा महिला हितों की रक्षा करने वाला विधान बनाना भारतीय कानून के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। धर्म भ्रष्ट होने की दुहाई देने वाले विद्वानों की विशेष बैठक अंबेडकर ने बुलाई। विद्वानों को तर्क की कसौटी पर कसते समझाया कि हिन्दू कोड बिल पास हो जाने से धर्म नष्ट नहीं होने वाला है। कानून शास्त्र के नजरिये से रामायण का विश्लेषण करते हुए कहा कि ‘‘ अगर राम और सीता का मामला मेरे कोर्ट में होता तो मैं राम को आजीवन कारावास की सजा देता।’’ संसद में हिन्दू कोड पर बोलते हुए डा . आम्बेडकर ने कहा कि ‘‘ भारतीय स्त्रियों की अवनति के कारण बुद्ध नहीं मनु है।’’ काफी वाद विवाद के बाद चार अनुच्छेद पास हुआ। अंततः राजेन्द्र प्रसाद ने इस्तीफे की धमकी दे दी। पंडित नेहरू इस बिल के पक्ष में थे, लेकिन वे बिल पास नहीं करा सके. अंततः डा. आम्बेडकर ने 27 सितंबर को हिन्दू कोड बिल सहित कई अन्य मुद्दों को लेकर कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

*हालाँकि बाद में यह 4 बार में पास हुआ जो निम्न प्रकार ह*ै :-
1) 18 मई 1955 – हिन्दू विवाह बिल पास
2) 17 जून 1956 – दलितों के उत्तराधिकार बताये गए l
3) 25 अगस्त 1956 – अल्प्सख्यकों के अधिकार मिले l
4) 14 दिसम्बर 1956 – हिन्दू अछूत मिलन बिल पास हुआ l (यह बिल बाबा साहेब के परिनिर्वाण के बाद पास हुआ जिसको वे अपने सामने पास होते देखना चाहते थे)
भारत को संविधान देने वाले इस महान नेता ने 06 दिसंबर, 1956 को देह-त्याग दिया. आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है तो यह इसी शख्स के कार्यों से मुमकिन हो सका है. भारत सदैव बाबा भीमराव अंबेडकर का कृतज्ञ रहेगा.👏👏

*संकलनकर्ता*
💲सचिन अम्बेडकर🅰
✍ सोशल ब्रेनवाश ™

Monday, 27 February 2017

डा बाबा सहाब अम्बेडकर ने 25 दिसम्बर, 1927 को मनुस्मृति का दहन क्यों किया ?

#ManusmritiDahan
---मनु स्मृति पर *ओशो* के विचार...

  *मनु* की स्मृति पढ़ने जैसी है। मनु की स्मृति से ज्यादा अन्यायपूर्ण शास्त्र खोजना कठिन है, क्योंकि कोई न्याय जैसी चीज ही नहीं है। मनुस्मृति हिंदुओं का आधार है--उनके सारे कानून,समाज-व्यवस्था का। अगर एक ब्राह्मण एक शूद्र की लड़की को भगाकर ले जाये तो कुछ भी पाप नहीं है। यह तो सौभाग्य है शूद्र की लड़की का। लेकिन अगर एक शूद्र, ब्राह्मण की लड़की को भगाकर ले जाये तो महापाप है। और हत्या से कम, इस शूद्र की हत्या से कम दंड नहीं। यह न्याय है! और इसको हजारों साल तक लोगों ने माना है।
जरूर मनाने वाले ने बड़ी कुशलता की होगी। कुशलता इतनी गहरी रही होगी, जितनी कि फिर दुनिया में पृथ्वी पर दुबारा कहीं नहीं हुई। ब्राह्मणों ने जैसी व्यवस्था निर्मित की भारत में, ऐसी व्यवस्था पृथ्वी पर कहीं कोई निर्मित नहीं कर पाया, क्योंकि ब्राह्मणों से ज्यादा बुद्धिमान आदमी खोजने कठिन हैं। बुद्धिमानी उनकी परंपरागत वसीयत थी। इसलिये ब्राह्मण शूद्रों को पढ़ने नहीं देते थे क्योंकि तुमने पढ़ा कि बगावत आई। स्त्रियों को पढ़ने की मनाही रखी क्योंकि स्त्रियों ने पढ़ा कि बगावत आई।
स्त्रियों को ब्राह्मणों ने समझा रखा था, पति परमात्मा है। लेकिन पत्नी परमात्मा नहीं है! यह किस भांति का प्रेम का ढंग है?कैसा ढांचा है? इसलिये पति मर जाये तो पत्नी को सती होना चाहिये, तो ही वह पतिव्रता थी। लेकिन कोई शास्त्र नहीं कहता कि पत्नी मर जाये तो पति को उसके साथ मर जाना चाहिये, तो ही वहपत्नीव्रती था। ना, इसका कोई सवाल ही नहीं।
पुरुष के लिये शास्त्र कहता है कि जैसे ही पत्नी मर जाये,जल्दी से दूसरी व्यवस्था विवाह की करें। उसमें देर न करें। लेकिन स्त्री के लिये विवाह की व्यवस्था नहीं है। इसलिये करोड़ों स्त्रियां या तो जल गईं और या विधवा रहकर उन्होंने जीवन भर कष्ट पाया। और यह बड़े मजे की बात है, एक स्त्री विधवा रहे, पुरुष तो कोई विधुर रहे नहीं; क्योंकि कोई शास्त्र में नियम नहीं है उसके विधुर रहने का।
तो भी विधवा स्त्री सम्मानित नहीं थी, अपमानित थी। होना तो चाहिये सम्मान, क्योंकि अपने पति के मर जाने के बाद उसने अपने जीवन की सारी वासना पति के साथ समाप्त कर दी। और वह संन्यासी की तरह जी रही है। लेकिन वह सम्मानित नहीं थी। घर में अगर कोई उत्सव-पर्व हो तो विधवा को बैठने का हक नहीं था। विवाह हो तो विधवा आगे नहीं आ सकती। बड़े मजे की बात है;कि जैसे विधवा ने ही पति को मार डाला है! इसका पाप उसके ऊपर है। जब पत्नी मरे तो पाप पति पर नहीं है, लेकिन पति मरे तो पाप पत्नी पर है! अरबों स्त्रियों को यह बात समझा दी गई और उन्होंने मान लिया। लेकिन मानने में एक तरकीब रखनी जरूरी थी कि जिसका भी शोषण करना हो, उसे अनुभव से गुजरने देना खतरनाक है और शिक्षित नहीं होना चाहिये। इसलिये शूद्रों को,स्त्रियों को शिक्षा का कोई अधिकार नहीं।
तुलसी जैसे विचारशील आदमी ने कहा है कि 'शूद्र, पशु, नारी,ये सब ताड़न के अधकारी।' इनको अच्छी तरह दंड देना चाहिये। इनको जितना सताओ, उतना ही ठीक रहते हैं। 'शूद्र, ढोल, पशु,नारी...' ढोल का भी उसी के साथ--जैसे ढोल को जितना पीटो,उतना ही अच्छा बजता है; ऐसे जितना ही उनको पीटो, जितना ही उनको सताओ उतने ही ये ठीक रहते हैं। यही धारा थी। इनको शिक्षित मत करो, इनके मन में बुद्धि न आये, विचार न उठे। अन्यथा विचार आया, बगावत आई। शिक्षा आई, विद्रोह आया।
विद्रोह का अर्थ क्या है? विद्रोह का अर्थ है, कि अब तुम जिसका शोषण करते हो उसके पास भी उतनी ही बुद्धि है, जितनी तुम्हारे पास। इसलिये उसे वंचित रखो।
        *ओशो* - बिन बाती बिन तेल--(झेन कथा) प्रवचन--8

बाबासाहेब द्वारा 'बुद्धा एंड हिज धम्म' लिखने के दौरान कांग्रेस की उपेक्षा

भारत भाग्य विधाता डॉ बाबा साहब अंबेडकर को कितनी परेशानियों के साथ भगवान बुद्ध को अपने ही भारत भूमि मे वापस लाने के लिए भयानक परिश्रम करना पड़ा है।
सत्ता मे बैठे मनूवादी जो बुद्ध के नाम पर बौद्ध देशों से धन ऐंठने और बुद्ध संस्कृति के विनाश के अलावा कुछ नहीं करते।
राष्ट्रीय काँग्रेस के उदासीन रवैये का
एक उत्तम उदाहरण आपके जानकारी के लिए दे रहें है।
डॉ बी आर अंबेडकर का पंडित जवाहरलाल नेहरू को लिखा पत्र
*A LETTER TO JAWAHARLAL NEHRU*
*REGARDING  THE BOOK*

*‘ 📘BUDDHA AND HIS DHAMMA’*

_Dr.  B.  R.  Ambedkar  had  written  a  letter,  on  *14th  September 1956* to Pandit Jawahadal Nehru regarding a book on_
*“The Buddha and his Dhamma”.*

It is as follows  : Editors.

*My dear Panditji,*
*_I am enclosing herewith two copies of a printed booklet showing the Table of Contents of a book on_* *“The Buddha and His Dhamma”* *_which I have just finished._* _The book is in the press.  From  the  table  of  the  contents  you  will  see  for  yourself how exhaustive the work is_.
*_The book is expected to be in the Market in September 1956._*
*_I have spent five years over it._*_The booklet will speak for the quality of the work. *The cost of printing is very hevy and will come to about Rs.  20,000. This  is  beyond  my  capacity*  and  I  am,  therefore, canvassing help from all quarters._
*I  wonder  if  the  Government  of  India  could  purchase  about  500 copies for distribution among the various libraries and among the many scholars whom it is inviting during the course of this year for the celebration of the Buddha’s 2500 years’ anniversary.*

*_I know your interest in Buddhism. That is why I am writing to you._*_I hope that you will render some help in this matter._

Yours sincerely,
(Signed)
*B. R. AMBEDKAR.*

*Pt. NEHRU’S REPLY*

Pandit Jawaharlal Nehru had responded to the letter of Dr. B. R. Ambedkar.

*_He expressed his inability to purchase the Book “Buddha and His Dhamma”._*

_He referred this to Dr.  Radhakrishnan, the  Chairman  of  Buddha  Jayanti  Commttee._

Following is the reply by Pt. Jawaharlal Nehru  :

Editors. Shri Jawaharlal Nehru, Prime Minister of India, NEW DELHI. No.  2196-PMH/56. NEW DELHI September 15, 1956.

*My dear Dr. Ambedkar,*

*_Your letter of the 14th September. I  rather  doubt  if  it  will  be  possible  for  us  to  buy a  large number of copies of your book suggested by you._*

_We had set aside a certain sum for publication on the occasion of the Buddha Jayanti._*_That sum has been exhausted and, in fact, exceeded.  Some  proposals  for  books  relating  to  Buddhism  being financed by us had, therefore, to be rejected._*
_I am, however, sending  your  letter  to  *Dr.  Radhakrishnan,*  the Chairman  of the Buddha Jayanti Committee._

*_I might  suggest  that your  book  might be  on  sale  in  Delhi and elsewhere at the time of the Buddha Jayanti celebrations when many people will come from abroad. It might find a good sale then._*

Yours sincerely,
(Signed)
*JAWAHARLAL NEHRU.*

Dr. B. R. Ambedkar, 26, Alipur Road, Civil Lines, DELHI.

*_Dr. S. Radhakrishnan informed on phone to Dr. B. R. Ambedkar  expressing  his  inability  to do  anything  in  this regard._*

*References :- Dr.BAW&S Vol- 17 Part 1 (Page No 444,445)*

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