संसार के अधिकांश देशों में ऐसे वर्ग हैं, जो निम्न वर्ग कहे जाते हैं. ये रोम में स्लेव या दास कहलाते थे. स्पार्टन में इनका नाम हेलोटस या क्रीत था. ब्रिटेन में ये विलियन्स या क्षुद्र कहलाते थे, अमरीका में नीग्रो और जर्मनी में ये यहूदी थे. हिंदुओं में यही दशा अछूतों की थी, परंतु इनमें से कोई इनता बदनसीब न था, जितना अभागा अछूत है. दास, क्रीत, क्षुद्र सभी लुप्त हो गए हैं. परंतु छूआछूत का भूत आज भी मौजूद है और यह तब तक मौजूद रहेगा जब तक हिंदू धर्म का अस्तित्व है. अछूत यहूदियों से भी गया-बीता है. यहूदियों की दुर्दशा उनकी अपनी करनी के कारण हैं. अछूतों की दुर्गति के कारण नितांत भिन्न है. यह निर्मम हिंदुओं की साजिश के शिकार हैं, जो उनकी दुर्दशा के लिए बर्बर तत्वों से कम नहीं है. यहूदी तिरस्कृत है, परंतु उनकी तरक्की के रास्ते बंद नहीं कर दिए गए हैं. अछूत केवल तिरस्कृत ही नहीं हैं, बल्कि उनकी तरक्की के सभी दरवाजे बंद हैं. फिर भी अछूतों की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया. 6 करोड़ (तब की जनसंख्या) प्राणियों की अनदेखी हो रही है.
भारत में आजादी का जो कोलाहल मचा है, उसमें यदि कोई हेतु है तो वह है अछूतों का हेतु. हिंदुओं और मुसलमानों की लालसा स्वाधीनता की आकांक्षा नहीं है. यह तो सत्ता संघर्ष है, जिसे स्वतंत्रता बताया जा रहा है. इसी कारण मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि किसी दल अथवा किसी संगठन ने अपने आप को अछूतों के प्रति समर्पित नहीं किया. अमरीकी साप्ताहिक ‘द नेशन’और इंग्लैंड के साप्ताहिक ‘स्टेट्समैन’प्रभावशाली अखबार है. दोनों ही भारतीय स्वतंत्रता के पक्षधर हैं और ये भारत की स्वतंत्रता का दम भरते हैं. जहां तक मैं जानता हूं, किसी ने भी अछूतों की समस्याओं को नहीं उठाया है. दरअसल उनकी स्थिति को कोई स्वतंत्रता प्रेमी प्रकट नहीं कर सकता. उन्होंने मात्र हिंदू संस्था को ही मान्यता दी है, जो स्वयं को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कहती है. अन्य हिंदू और कोई अन्य यह नहीं जानता कि वास्तव में अछूत क्या है. भारत में हिंदूओं के सिवाय सब जानते हैं कि नाम कुछ भी क्यों न रख लिया गया हो, यह संदेहातीत है कि मध्यमवर्गीय हिंदुओं की संस्था है, जिसको हिंदू पूंजीपतियों का समर्थन प्राप्त है, जिसका लक्ष्य भारतीयों की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि ब्रिटेन के नियंत्रण से मुक्त होना और वह सत्ता प्राप्त कर लेना है, जो इस समय अंग्रेजों की मुट्ठी में है. कांग्रेस जैसी आजादी चाहती है, यदि उसे वह मिल जाती है, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि अछूतों का ठीक वही हाल होगा जो अतीत में होता रहा है. अछूतों के प्रति इस अवहेलना के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की भारतीय शाखा बधाई की पात्र है जिसने प्रशांत संबंध संस्थान में मेरा प्रबंध लेख आमंत्रित किया कि मैं इस विषय पर प्रकाश डाल सकूं कि भारत के नए संविधान में अछूतों की स्थिति क्या होगी. मैं स्वीकार करता हूं कि भारत के नए संविधान में अछूतों की स्थिति पर मेरे वक्तव्य का निमंत्रण एक सुखद आश्चर्य है. मुझे इस बात से बहुत प्रसन्नता हुई है कि बहुत से काम हाथ में होने के पश्चात भी मैं यह प्रबंध लेख लिखने के लिए अपनी सहमति दे सका हूं.
(अंबेडकर प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर के संपूर्ण बाड़्मय खंड 19 से साभार)
source : http://dalitmat.com/index.php?option=com_content&view=article&id=332%3A2011-06-20-03-40-11&catid=21%3Afront-news&Itemid=1
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